"रोशन सिंह": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Krantmlverma (वार्ता | योगदान) |
Krantmlverma (वार्ता | योगदान) |
||
पंक्ति 16:
ठाकुर साहब ने ६ दिसम्बर १९२७ को [[इलाहाबाद]] स्थित मलाका (नैनी) [[जेल]] की काल-कोठरी से अपने एक मित्र को पत्र में लिखा था:
::"इस सप्ताह के भीतर ही फाँसी होगी। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह आपको मोहब्बत का बदला दे। आप मेरे लिये रंज हरगिज न करें। मेरी मौत खुशी का बाइस (कारण) होगी। दुनिया में पैदा होकर मरना जरूर है। दुनिया में बदफैली करके अपने को बदनाम न करे और मरते वक्त ईश्वर की याद रहे;यही दो बातें होनी चाहिये और ईश्वर की कृपा से मेरे साथ ये दोनों बातें हैं। इसलिये मेरी मौत किसी प्रकार अफसोस के लायक नहीं है। दो साल से बाल-बच्चों से अलग रहा हूँ। इस बीच ईश्वर भजन का खूब मौका मिला। इससे मेरा मोह छूट गया और कोई वासना बाकी न रही। मेरा पूरा विश्वास है कि दुनिया की कष्ट भरी यात्रा समाप्त करके मैं अब आराम की जिन्दगी जीने के लिये जा रहा हूँ। हमारे शास्त्रों में लिखा है कि जो आदमी धर्म युद्ध में प्राण देता है उसकी वही गति होती है जो जंगल में रहकर तपस्या करने वाले ऋषि मुनियों की।"
::::'''"जिन्दगी जिन्दा-दिली को जान ऐ रोशन!'''
::::''' वरना कितने ही यहाँ रोज फना होते हैं।"'''
|