"व्याकरण": अवतरणों में अंतर
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संस्कृत में इकारांत शब्दों के द्विवचन ईकारांत हो जाते हैं- "कवि समागतौ"; हिंदी में ऐसा न होगा। "दो कवि आए" कहा जाएगा। इसी तरह संस्कृत में "राजदपंती समागतौ"। हिंदी में "राजदंपति" सर्वत्र।
परकीय शब्दों को आत्मसात् करने की यह भी एक प्रक्रिया है कि अनमेल रूप को काट छाँटकर अपने मेल का बना लेना। हिंदी का "गंगा जी" शब्द अंग्रेजी में गया; पर "गेंजिज" बनाकर। अंग्रेजी "लैंटर्न" शब्द हिंदी ने लिया; पर "लालटेन" बनाकर और "हॉस्पिटल" को "अस्पताल" बनाकर। "हस्पताल" भी हिंदी में गलत है। "हॉस्पिटल" और "डॉक्टर" जैसे रूप हिंदी को ग्राह्य नहीं। हिंदी का व्याकरण नियमन करेगा कि हिंदी में वह उच्चारण है ही नहीं, जिसे स्वर पर उल्टा टोप रख कर प्रकट किया जाता है। यहाँ "मास्टर" की ही तरह डाक्टर" चलता है। हाँ, नागरी लिपि में अंग्रेजी भाषा लिखनी हो तब वह उलटा टोप काम आएगा - द डॉक्टर वाज़ फुलिश"। इसी तरह नागरी में फारसी जैसी भाषा लिखनी हो तो "बाज़ार", "जरूरत" आदि रूप रहेंगे; पर हिंदी में नीचे बिंदी न रहेगी - "जरूरी चीजों के लिए बाजार है।" उर्दू के शेर आदि लिखने हों तो भी नीचे विंदी लग जाएगी। शब्दों का यह रूपनिर्धारण व्याकरण के वर्ण प्रकरण से होगा।
== इन्हें भी देखे ==
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