"देवनागरी अंक": अवतरणों में अंतर

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-- <b>[[सदस्य:अनुनाद सिंह|<font color="blue">अनुनाद सिंह</font>]]</b><sup>[[सदस्य वार्ता:अनुनाद सिंह|<font color="green">वार्ता</font>]]</sup> 09:00, 3 अगस्त 2011 (UTC)
जब तक और जहाँ तक यांत्रिक बाधा हो तबतक और वहाँ तक अंतर्राषट्रीय अंकों (यद्यपि यह भ्रामक शब्द है) का प्रयोग करते रहना चाहिए। किंतु लक्ष्य तो नागरी अंक ही हैं या हो सकते हैं। पहले आधार के लिए स्टब साँचा लगता था श्रेणी के लिए कैटेगरी। किंतु क्या इस दिशा में किया गया परिवर्तन ही सही नहीं है? ... तब यांत्रिक बाधाएं भी ज्यादा थीं। पहले के लिए गए निर्णयों को बदलने से पहले उसके पीछे के निहित भाव को पूरे संदर्भ में समझने की जरूरत है। सुविधाओं के अनुसार बदलने के बजाय सुविधाओं का निर्माण करने की संस्कृति क्या अधिक बेहतर नहीं है। कम से कम ऐसी आकांक्षा तो रखनी ही चाहिए। <small><span style="border:1px solid magenta;padding:1px;">[[User:aniruddhajnu|<b>अनिरुद्ध</b>]][[User_talk:अनिरुद्ध|<font style="color:purple;background:lightgreen;"> &nbsp;वार्ता&nbsp;</font>]] </span></small> 04:41, 4 अगस्त 2011 (UTC)
* अब जालपृष्ठों के नाम यानी की वेबसाइटों के नाम तक लातिन लिपि में रहने आवश्यक नहीं है। यदि भारत '''महान''' के लोग होते तो कहते यह तो सम्भव ही नहीं है। और बात भी सही है, आखिर किसी भी प्रौद्योगिकी पर केवल एक ही भाषा का दबदबा क्यों हो!
 
==== सांस्कृतिक तथा अस्मितापरक सरोकार ====