"देवनागरी अंक": अवतरणों में अंतर

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* उत्कर्ष के संवैधानिक प्रावधान के संदर्भ के लिए इतना जरूर कहूँगा कि हिंदी के संवैधानिक प्रावधानों को उस समय की और बाद की भाषायी राजनितिक संदर्भ से काटकर सर्वसम्मत निर्णय के रूप में देखने से बचें। लेकिन अगर संवैधानिक प्रावधानों के उल्लेख से ही कुछ तय होना है तो उत्कर्ष द्वारा उद्धृत प्रावधान के निर्माण के 4 साल बाद राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद जिनके अध्यक्षिय मत से हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में दर्ज हो पाई थी, ने नागरी अंकों के प्रयोग के लिए अध्यादेश जारी किया था।
* भारत सरकार की राजभाषा नीति का कोई अर्थ नहीं रह जाता क्योंकि वह नीति 'सम्पूर्ण रूप' में लागू कहाँ है? हिन्दी वालों को जो-जो त्यागना था उन्होने त्याग दिये-- <b>[[सदस्य:अनुनाद सिंह|<font color="blue">अनुनाद सिंह</font>]]</b><sup>[[सदस्य वार्ता:अनुनाद सिंह|<font color="green">वार्ता</font>]]</sup> 09:00, 3 अगस्त 2011 (UTC)
* और जहाँ तक रही बात संविधान की तो भारत का संविधान भी अमेरिकी संविधान की नकल है। और कौन सा भारत की सरकार ही संविधान का पालन करती है। संविधान के अनुसार हिन्दी भारत की प्रथम राजभाषा है और सरकार के सभी दस्तावेज हिन्दी में तो होने ही चाहिए लेकिन अहिन्दी भाषी राज्यों में बहुत बार केवल उस राज्य की भाषा और अंग्रेज़ी जैसी विदेशी भाषा में ही दस्तावेज उपलब्ध कराए जाते हैं हिन्दी में नहीं। दुनिया के ढंग के देशों में उनकी अपनी भाषाओं में कार्यक्रम बनाए जाते है और उनका अंग्रेज़ी अनुवाद किया जाता है और भारत '''महान''' में अंग्रेज़ी में कार्यक्रम बनाए जाते है और उनका भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जाता है।
* दरसल पूरे भारत में हिन्दी के वास्तविक स्वरूप को मिटाने का जो कुचक्र चल रहा है यह उसी निति का भाग है। और आजकल देखने में आ रहा है कि हिन्दी विकि पर अंग्रेज़ी के घालमेल का चलन भी आ चुका है। फ़्रान्सीसी ही क्यों, चीनी, जापानी, कोरियाई जैसी भाषाएं भी विश्व की कठिनतम भाषाएं हैं, और उनकी लिपि भी तो क्या उन लोगों ने अपनी लिपियों को बदल डाला है? नहीं ना। ...
 
== बाह्य सूत्र ==