"द्वयाधारी संख्या पद्धति": अवतरणों में अंतर

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'''द्वयाधारी संख्या पद्धति''' (binary numeral system; द्वयाधारी = द्वि + आधारी = '२' आधार वाला) केवल दो [[अंक|अंकों]] ('''०''' तथा '''१''') को काम में लेने वाली [[स्थानीय मान पद्धति|स्थानीय मान संख्या पद्धति]] है। हैइसमें जिसमेंसंख्या स्थानीयका मान निकालने का आधार (रैडिक्स) '''२''' लिया जाता है। चूंकि दो स्थिति (हाई / लो) वाले [[इलेक्ट्रानिक गेट]] इन संख्याओं को बड़ी सरलता से निरूपित कर देते हैं, इस कारण [[कम्प्यूटर]] के हार्डवेयर एवं साफ्टवेयर में इस पद्धति का बहुतायत से प्रयोग होता है।बाइनरी पद्धति दो अंकों मात्र '''०''' तथा '''१''' के द्वारा सभी शब्दों को पढ़ती है। आमतौर पर दशमलव पद्धति में जहां दस अंकों का प्रयोग होता है, वहीं द्वयाधारी में केवल ये दो अंक ही प्रयोग में आते हैं। इसलिए कंप्यूटर में इन्हीं दो अंकों के द्वारा सभी काम होता है। पहला शब्द ० से इंगित होता है जिसका अर्थ है करंट का अभाव, व दूसरा १, यानि करंट की उपस्थिति। दशमलब पद्धति का १ नंबर बाइनरी पद्धति में भी १ से ही इंगित होता है।
 
आम प्रयोग में दशमलव पद्धति सरल होती है, इसलिये आरंभिक रूप यही प्रचलित हुई और बाद में भी जब गणना के कई तरीके सामने आए तो दशमलव पद्धति को प्रमुख स्थान मिला था। हालांकि द्वयाधारी भी काफी हद तक एक प्राकृतिक पद्धति है।कई आध्यात्मिक परंपराओं में, जैसे पाइथागोरस स्कूल और प्राचीन भारतीय संत परंपरा में भी इसका प्रयोग होता था। द्वयाधारी पद्धति का आरंभ ईसा पूर्व छठी शताब्दी से माना जाता है। सन् १८५४ में गणितज्ञ जॉर्ज बूल ने द्वयाधारी पद्धति पर आधारित एक पत्र प्रकाशित किया था। इसी के साथ बूलियन एलजेब्रा (बीजगणित) की आधारशिला पड़ी थी। सन् १९३७ में क्लॉड शैनन ने द्वयाधारी बीजगणित के आधार पर थ्योरी ऑफ सर्किट की नींव रखी थी। १९४० में बाइनरी कंप्यूटिंग की शुरुआत बैल लैब्स कॉम्प्लेक्स नंबर कंप्यूटर के साथ हुई थी।
 
द्वयाधारी संख्याओं को दशमलव नंबरों में बदलने के गणितीय तरीके होते हैं। इसके तहत कई गणितीय उपकरण हैं जिनसे द्वयाधारी सहित अन्य विधियों में जमा, घटा, गुणा, भाग व अन्य गणितीय आकलन होते हैं। द्वयाधारी नंबरों से दशमलव में अंकों को बदलना जहां जटिल है, वहीं द्वयाधारी को अन्य विधियों में अंतरण करना अपेक्षाकृत सरल होता है।
 
==इतिहास==
[[भारत]] के विद्वान [[पिंगल]] (लगभग ५वीं से - २री शती ईसापूर्व) ने [[छन्द|छन्दों]] के वर्णन में द्वयाधारी संख्या पद्धति का अत्यन्त बुद्धिमतापूर्वक प्रयोग किया है। इस प्रकार पिंगल द्वयाधारी संख्या पद्धति का वर्णन करने वाले प्रथम व्यक्ति हैं।
 
आमदशमलव प्रयोगपद्धति मेंमानवीय दशमलवउपयोग पद्धतिके लिये सरल होती है, इसलिये आरंभिक रूप यही प्रचलित हुई और बाद में भी जब गणना के कई तरीके सामने आए तो दशमलव पद्धति को प्रमुख स्थान मिला था। हालांकि द्वयाधारी भी काफी हद तक एक प्राकृतिक पद्धति है।कईहै। कई आध्यात्मिक परंपराओं में, जैसे पाइथागोरस स्कूल और प्राचीन भारतीय संत परंपरा में भी इसका प्रयोग होता था। द्वयाधारी पद्धति का आरंभ ईसा पूर्व छठी शताब्दी से माना जाता है। सन् १८५४ में गणितज्ञ जॉर्ज बूल ने द्वयाधारी पद्धति पर आधारित एक पत्र प्रकाशित किया था। इसी के साथ [[बूलीय बीजगणित|बूलियन एलजेब्रा]] (बीजगणित) की आधारशिला पड़ी थी। सन् १९३७ में क्लॉड शैनन ने [[द्वयाधारी बीजगणित]] के आधार पर थ्योरी ऑफ सर्किट की नींव रखी थी। १९४० में बाइनरी कंप्यूटिंग की शुरुआत बैल लैब्स कॉम्प्लेक्स नंबर कंप्यूटर के साथ हुई थी।
 
==द्वयाधारी निरूपण==
नीचे लिखे हुए सभी 'संकेतों का समूह' संख्या 'छः सौ सरसठ (667) को निरूपित कर रहे हैं। किन्तु पहला वाला निरूपण सबसे अधिक प्रचलित है।
 
1 0 1 0 0 1 1 0 1 1
| − | − − | | − | |
x o x o o x x o x x
y n y n n y y n y y
 
भ्रम से बचाने के '''0''' और '''1''' का प्रयोग करके लिखे गये द्वि-आधारी संख्याओं के साथ कुछ और भी लगा दिया जाता है ताकि उसका आधार (२) स्पष्ट रहे। इस प्रकार, निम्नलिखित सभी निरूपण एक ही संख्या को निरूपित करते हैं-
 
:100101 द्वयाधारी (आधार का स्पष्ट उल्लेख कर दिया है)
:100101b (यहाँ प्रत्यय जोड़ दिया है जो द्वयाधारी संख्या को सूचित कर रहा है।)
:100101B (यहाँ भी प्रत्यय जोड़ दिया है जो द्वयाधारी संख्या को सूचित कर रहा है।)
:bin 100101 ((यहाँ संख्या के पहले उपसर्ग bin जोड़ दिया है जो द्वयाधारी संख्या को सूचित कर रहा है।)
:100101<sub>2</sub> (यहाँ आधार-2 को सूचित करने वाला 'सबस्क्रिप्ट' जोड़ दिया गया है।)
:%100101 (द्वयाधारी संख्या बताने वाला एक उपसर्ग (प्रीफिक्स) लगा दिया गया है।)
:0b100101 (द्वयाधारी संख्या बताने वाला एक उपसर्ग (प्रीफिक्स) लगा दिया गया है। ; [[प्रोग्रामन भाषा]]ओं में प्रायः प्रयुक्त)
:6b100101 (द्वयाधारी संख्या बताने वाला एक उपसर्ग (प्रीफिक्स) लगा दिया गया है। ; [[प्रोग्रामन भाषा]]ओं में प्रायः प्रयुक्त)
 
द्वयाधारी संख्याओं ओ जब शब्दों में उच्चारित करना पड़ता है तो उन्हें अंकशः (digit-by-digit) पढ़ते हैं जिससे दाशमिक संख्याओं से भिन्नता समझ में आ सके। उदाहरण के लिये, बाइनरी संख्या 100 का उच्चारण ''एक शून्य शून्य'' (one zero zero) करेंगे न कि ''एक सौ''। इससे इस संख्या का द्विआधारी प्रकृति का पता भी चल जाता है और 'शुद्धता' भी रहती है। '100', एक सौ नहीं है, यह केवल चार है। इसलिये इसे 'एक सौ' पुकारना गलत है।
 
==द्वयाधारी गिनती (Counting in binary)==
नीचे द्वयाधारी संख्या पद्धति में शून्य से सोलह तक की गिनती (लिखने का तरीका) दिया गया है।
{| class="wikitable" border="1" align="right"
|-
! Decimal pattern
! Binary numbers
|-
| 0
|align="right"| 0
|-
| 1
|align="right"| 1
|-
| 2
|align="right"| 10
|-
| 3
|align="right"| 11
|-
| 4
|align="right"| 100
|-
| 5
|align="right"| 101
|-
| 6
|align="right"| 110
|-
| 7
|align="right"| 111
|-
| 8
|align="right"| 1000
|-
| 9
|align="right"| 1001
|-
| 10
|align="right"| 1010
|-
| 11
|align="right"| 1011
|-
| 12
|align="right"| 1100
|-
| 13
|align="right"| 1101
|-
| 14
|align="right"| 1110
|-
| 15
|align="right"| 1111
|-
| 16
|align="right"| 10000
|-
|}
 
== बाहरी कड़ियाँ ==