"मलय रॉय चौधुरी": अवतरणों में अंतर

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==पृष्ठभूमि==
[[Image:MalayPoetry - Palamau Bihar 1963Sessions.gifjpg|thumb|100pxleft|200px| सनडालटनगंजमे १९६३एक मेंकवि गोष्ठीमें मलय राय्चौधुरी एवम समीर रायचौधुरी]]
[[मलय रायचौधुरी]]का जन्म बिहार राज्यके पटना शहरमें एक ब्राह्मण परिवारमें हुया जो वहां पचास सालसे भी ज्यादा समयसे इमलितला ( बाखरगंज ) नामके बहुतही गरीब मुहल्ले में निम्नबर्गके हिन्दु और शिया मुसलमानोंके साथ रहते थे। यह परिवेशका प्रभाव उनके चिन्तन एवम लेखनमें पडा। भुखी पीढी का जन्म एक तरहसे उनके इस परिवेश का अवदान कहा जा सकता है। उनके पिता रंजित रायचौधुरी पटना शहरके काफि पुरानि फोटोग्राफि तथा चित्रकारी संस्था ''रायचौधुरी ऐन्ड कं''के जानेमाने शिल्पी थे। पिताके बडे भाइ प्रमोद रायचौधुरी थे पटना मिउजियमके ''किपर आफ पेइनटिंस ऐन्ड स्कल्पचर''। मलय रायचौधुरीके घरमें शास्त्रीय संगीत का आदर था क्यों कि उनके दोनों बडी बहने शस्त्रीय संगीत में माहिर थे। घरमें हर प्रकार के कला का आदर था। मलय रायचौधुरीके माता अमिता बन्द्योपाध्याय आये थे २४ परगणास्थित पानिहटि गांवके शिक्षित परिवार से, जिनके पुरुषोंमें ब्राह्मोसमाजका गभीर प्रभाव था। मलयका स्कुली शिक्षा पहले सेन्ट जोसेफ्स कान्वेन्ट और बादमें राममोहन राय सेमनरिमें हुया। पटना विश्वविद्यालयसे वे बिए अनर्स तथा एमए किये। एमए पढ्ते समयही वे उनका पहला किताब ''मार्कसवादेर उत्तराधिकार'' लिखना शुरु किया था। [[शक्ति चट्टोपाध्याय]]के साथ मतान्तरके कारण यह किताब प्रकाशित होनेके बाद एक कापि रख कर बाकि सब जला दिये गये थे। मध्यान्तरमें मलय कविता लिखना शुरु किये थे। कविता लिखते समय वह महसुस किये थे कि बांग्ला साहित्य उचितरूपसे उपनिवेशके बादका परिसर प्रतिबिम्बित नहीं कर पा रहा है एवम पुरे व्यवस्था को झक्झोर देनेके लिये एक साहित्यिक आंदोलन बहुतही जरुरि है। वह अप्ने बडे भाइ [[समीर रायचौधुरी]]के साथ आलोचनाके पश्चात अपने मित्र [[सुबिमल बसाक]] जो कि पटना निवासी थे और [[देबी राय]]को पुरे कार्यक्रम का ब्योरा दिया। बचपन से ही [[फणीश्वर नाथ 'रेणु']] के साथ मलयके परिवार का परिचय था। वे उन्के पथप्रदर्शक रहें। कानवेन्टमे पढाइके कारण मलयको बाइबल, ओलड एवम निउ टेस्टामेन्ट के कहानियां काम आये जब वह कालेजमें अंग्रेजी पाठके समय ब्रिटिश कवि जिओफ्रे चौसर के ''काउनटरबेरि टेलस''से भुखी पीढी आंदोलनके '''भुख'' अविधाका एक नया आयाम पाया। चौसरने ही कहा था ''इन दि सावर हंगरी टाइम''। मार्कसवाद पर किताब लिखते समय मलय परिचित हुये थे जर्मन दार्शनिक आस्वल्ड स्पेंगलरके ''दि डिक्लाइन आफ दि वेस्ट'' ग्रन्थ से, जिस्के दर्शन, उनको लगा था, भारतीय उत्तरऔपनिवेशिक स्थितिको सही-सही व्याख्या करता है। उनहोने एक पन्ने का मैनिफेस्टो पटनामें ही १९६१के नवम्बर में निकाला और देबी रायको भेजा कोलकातामें वितरित करने के लिये। उसके बाद जो हुया वह तो केवल बांग्ला नहीं, भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण इतिहास है।
[[Image:Hungry Generation.jpg|thumb|left|200px| मलय रायचौधुरी के निर्देशन में प्रकाशित भुखी पीढी आंदोलन का मैगजिन कवर]]