"शंकर दयाल सिंह": अवतरणों में अंतर
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==साहित्य की छाँव==
जीवन को धूप-छाँव का खेल मानने वाले शंकर दयाल सिंह का यह मानना एक दम सही था कि जिस प्रकार प्रकृति अपना संतुलन अपने आप कर लेती है उसी प्रकार राजनीति में काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को साहित्यकार होना पहली योग्यता का मापदण्ड होना चाहिये। वे अपने से पूर्ववर्ती सभी दिग्गज राजनीतिक व्यक्तियों का उदाहरण प्राय: दिया करते थे और बताते थे कि वे सभी दिग्गज लोग साहित्यकार पहले थे बाद में राजनीतिकार या कुछ भी; जिसके कारण उनके जीवन में निरन्तर सन्तुलन बना रहा और वे देश के साथ कभी धोखा नहीं कर पाये। आज जिसे देखो वही राजनीति को व्यवसाय की तरह समझता है सेवा की तरह नहीं; यही कारण है कि सर्वत्र अशान्ति का साम्राज्य है। हालात यह हैं कि आजकल राजनीति की धूप में नेताओं के पाँव कम, जनता के अधिक झुलस रहे हैं। उन्हीं के शब्दों में - "मैंने स्वयं राजनीति से आसव ग्रहण कर उसकी मस्ती साहित्य में बिखेरी है। अनुभव वहाँ से लिये, अनुभूति यहाँ से। मरण वहाँ से वरण किया जीवन यहाँ से। वहाँ की धूप में जब-जब झुलसा,छाँव के लिये इस ओर भागा। लेकिन यह सही है कि
==भाषा की भँवर में==
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