"फतेहपुर जिला": अवतरणों में अंतर

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== ऐतिहासिक स्थल ==
'''बावनी इमली''' <br />यह [[स्मारक]] [[स्वतंत्रता]] सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 को [[ब्रिटिश सेना]] द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगो का विश्वास है के उस [[पेड़]] का विकास उस [[नरसंहार]] के बाद बंद हो गया है। यह जगह [[बिन्दकी]] उपखंड में [[खजुआ]] कस्बे के निकट है। [[बिन्दकी]] [[तहसील]] मुख्यालय से तीन [[किलोमीटर]] पश्चिम मुगल रोड स्थित [[शहीद]] [[स्मारक]] [[बावनी इमली]] [[स्वतंत्रता]] की जंग में अपना विशेष महत्व रखती है। शहीद स्थल में बूढ़े इमली के पेड़ में 28 अप्रैल 18571858 को [[रसूलपुर]] गांव के निवासी [[जोधा सिंह अटैया]] को उनके इक्यावन क्रांतिकारियों के साथ [[फांसी]] पर लटका दिया गया था इन्हीं बावन शहीदों की [[स्मृति]] में इस [[वृक्ष]] को [[बावनी इमली]] कहा जाने लगा।
 
चार फरवरी 1858 को [[जोधा सिंह अटैया]] पर [[ब्रिगेडियर करथ्यू]] ने असफल [[आक्रमण]] किया। साहसी [[जोधा सिंह अटैया]] को सरकारी कार्यालय लूटने एवं जलाये जाने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें डकैत घोषित कर दिया। जोधा सिंह ने 27अक्टूबर 1857 को [[महमूदपुर गांव]] में एक दरोगा व एक अंग्रेज सिपाही को घेरकरमार डाला था। सात दिसंबर 1857 को गंगापार रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला करएक अंग्रेज परस्त को भी मार डाला। इसी क्रांतिकारी गुट ने 9 दिसंबर को [[जहानाबाद]] में गदर काटी और छापा मारकर ढंग से तहसीलदार को बंदी बना लिया।[[जोधा सिंह]] ने [[दरियाव सिंह]] और [[शिवदयाल सिंह]] के साथ [[गोरिल्ला युद्ध]] कीशुरुआत की थी। [[जोधा सिंह]] को 28 अप्रैल 1858 को अपने इक्यावन साथियों के साथ लौट रहे थे तभी मुखबिर की सूचना पर [[कर्नल क्रिस्टाइल]] की सेना ने उन्हें सभी साथियों सहित बंदी बना लिया और सबको [[फांसी]] दे दी गयी। बर्बरता की चरम सीमा यह रही कि शवों को पेड़ से उतारा भी नहीं गया। कई दिनों तक यह शव इसी पेड़ पर झूलते रहे। चार जून की रात अपने सशस्त्र साथियों के साथ [[महराज सिंह]] [[बावनी इमली]] आये और शवों को उतारकर [[शिवराजपुर]] में इन नरकंकालों की अंत्येष्टि की।