"त्रिलोचन शास्त्री": अवतरणों में अंतर

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त्रिलोचन ने लोक भाषा अवधी और प्राचीन संस्कृत से प्रेरणा ली, इसलिए उनकी विशिष्टता हिंदी कविता की परंपरागत धारा से जुड़ी हुई है। मजेदार बात यह है कि अपनी परंपरा से इतने नजदीक से जुड़े रहने के कारण ही उनमें आधुनिकता की सुंदरता और सुवास थी।
==त्रिलोचन की भाषा शैली==
 
त्रिलोचन ने लोक भाषा अवधी और प्राचीन संस्कृत से प्रेरणा ली, इसलिए उनकी विशिष्टता हिंदी कविता की परंपरागत धारा से जुड़ी हुई है। मजेदार बात यह है कि अपनी परंपरा से इतने नजदीक से जुड़े रहने के कारण ही उनमें आधुनिकता की सुंदरता और सुवास थी।
प्रगतिशील धारा के कवि होने के कारण त्रिलोचन मार्क्सवादी चेतना से संपन्न कवि थे, लेकिन इस चेतना का उपयोग उन्होंने अपने ढंग से किया। प्रकट रूप में उनकी कविताएं वाम विचारधारा के बारे मंे उस तरह नहीं कहतीं, जिस तरह नागार्जुन या केदारनाथ अग्रवाल की कविताएं कहती हैं। त्रिलोचन के भीतर विचारों को लेकर कोई बड़बोलापन भी नहीं था। उनके लेखन में एक विश्वास हर जगह तैरता था कि परिवर्तन की क्रांतिकारी भूमिका जनता ही निभाएगी।
 
==रस छंद अलंकार==
वैसे तो उन्होंने गीत, गजल, सॉनेट, कुंडलियां, बरवै, मुक्त छंद जैसे कविता के तमाम माध्यमों मंे लिखा, लेकिन सॉनेट (चतुष्पदी) के कारण वह ज्यादा जाने गए। वह आधुनिक हिंदी कविता में सॉनेट के जन्मदाता थे। हिंदी में सॉनेट को विजातीय माना जाता था। लेकिन त्रिलोचन ने इसका भारतीयकरण किया। इसके लिए उन्होंने रोला छंद को आधार बनाया तथा बोलचाल की भाषा और लय का प्रयोग करते हुए चतुष्पदी को लोकरंग में रंगने का काम किया। इस छंद में उन्होंने जितनी रचनाएं कीं, संभवत: स्पेंसर, मिल्टन और शेक्सपीयर जैसे कवियों ने भी नहीं कीं। सॉनेट के जितने भी रूप-भेद साहित्य में किए गए हैं, उन सभी को त्रिलोचन ने आजमाया। <ref>{{cite web |url= http://www.amarujala.com/Aakhar/detail.asp?section_id=1&id=652|title= वयोवृद्ध कवि त्रिलोचन शास्त्री नहीं रहे|accessmonthday=[[10 दिसंबर]]|accessyear=[[2007]]|format= एएसपी|publisher= अमर उजाला}}</ref>