"त्रिलोचन शास्त्री": अवतरणों में अंतर
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जो भूखा दूखा है<br>
नंगा है अनजान है कला नहीं जानता <br>
कैसी होती है वह क्या है वह नहीं मानता<ref>{{cite web
त्रिलोचन ने लोक भाषा अवधी और प्राचीन संस्कृत से प्रेरणा ली, इसलिए उनकी विशिष्टता हिंदी कविता की परंपरागत धारा से जुड़ी हुई है। मजेदार बात यह है कि अपनी परंपरा से इतने नजदीक से जुड़े रहने के कारण ही उनमें आधुनिकता की सुंदरता और सुवास थी।
प्रगतिशील धारा के कवि होने के कारण त्रिलोचन मार्क्सवादी चेतना से संपन्न कवि थे, लेकिन इस चेतना का उपयोग उन्होंने अपने ढंग से किया। प्रकट रूप में उनकी कविताएं वाम विचारधारा के बारे में उस तरह नहीं कहतीं, जिस तरह नागार्जुन या केदारनाथ अग्रवाल की कविताएं कहती हैं। त्रिलोचन के भीतर विचारों को लेकर कोई बड़बोलापन भी नहीं था। उनके लेखन में एक विश्वास हर जगह तैरता था कि परिवर्तन की क्रांतिकारी भूमिका जनता ही निभाएगी।<ref>{{cite web |url= http://www2.dw-world.de/hindi/Welt/1.231388.1.html|title= त्रिलोचन शास्त्री नहीं रहे|accessmonthday=[[10 दिसंबर]]|accessyear=[[2007]]|format= एचटीएमएल|publisher= डॉयशेवेले}}</ref>
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