"मण्डन मिश्र": अवतरणों में अंतर
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मंडन मिश्र कुमारिल भट्ट के शिष्य थे, इस बात का कोई अकाट्य प्रमाण नहीँ मिलता. यह बात केवल 'शंकर-दिग्विजय' के आधार पर कही जाती है, जो कि एक नितान्त अप्रामाणिक कथा-पुस्तक है. मंडन और सुरेश्वर की भिन्नता के ही जब अधिकांश प्रमाण मिलते हैं तो यह कहा जाना किसी भी तरह से उचित नहीँ है कि मंडन ही शास्त्रार्थ में पराजित होकर सुरेश्वर बने थे. दरअसल इन दोनों महापुरुषों(मंडन और शंकर) के बीच शास्त्रार्थ होने की बात ही पूरी तरह काल्पनिक और रणनीतिक है,जो मध्यकाल में शंकर के मठ द्वारा प्रचारित किया गया.शब्दाद्वैत,अन्यथाख्यातिवाद,अविद्या,जीव,ब्रह्म आदि के बारे में सुरेश्वर के जो भी विचार हैं, वे शत-प्रतिशत शंकराचार्य के अनुगामी हैं.गुरु के चरणों की प्रीति ही उनका परम लक्ष्य है. वे असहिष्णुता की हद तक मंडन का विरोध करते हैं और उन्हें अलग प्रस्थान का अद्वैतवेदान्ती बताते हैं.फिर,वही सुरेश्वर स्वयं मंडन कैसे हो सकते हैं?'विवरण-प्रस्थान' के प्रवर्तक सुरेश्वर नहीं, 'विवरण-कार' हैं,जबकि 'भामती-प्रस्थान'पूरी तरह मंडन का अनुगमन करता है. जब किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में मंडन और सुरेश्वर को एक नही माना गया है, तब हमारे विद्वान-गण क्यों शास्त्रार्थ के मिथक का बोझ सर पर उठाए युग-युग से परेशान हो रहे हैं.अब भी तो सच को स्वीकार किया जाए.
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