"छत्तीसगढ़ का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल के दक्षिण कोशल, जिसका विस्तार पश्चिम में [[त्रिपुरी]] से ले कर पूर्व में [[उड़ीसा]] के [[सम्बलपुर]] और [[कालाहण्डी]] तक था, का एक हिस्सा है और इसका इतिहास पौराणिक काल तक पीछे की ओर चला जाता है। पौराणिक काल का 'कोशल' प्रदेश, जो कि कालान्तर में 'उत्तर कोशल' और 'दक्षिण कोशल' नाम से दो भागों में विभक्त हो गया, का 'दक्षिण कोशल' ही वर्तमान छत्तीसगढ़ कहलाता है। इस क्षेत्र के [[महानदी]] (जिसका नाम उस काल में '[[चित्रोत्पला]]' था) का [[मत्स्यपुराण]] तथा [[महाभारत]] के [[भीष्म पर्व]] में वर्णन है -
 
"चित्रोत्पला" चित्ररथां मंजुलां वाहिनी तथा।<br>
मन्दाकिनीं वैतरणीं कोषां चापि महानदीम्।।"<br>
'''- महाभारत - भीष्मपर्व - 9/34'''
 
"मन्दाकिनीदशार्णा च चित्रकूटा तथैव च।<br>
तमसा पिप्पलीश्येनी तथा चित्रोत्पलापि च।।"<br>
'''मत्स्यपुराण - भारतवर्ष वर्णन प्रकरण - 50/25)'''
 
"चित्रोत्पला वेत्रवपी करमोदा पिशाचिका।<br>
तथान्यातिलघुश्रोणी विपाया शेवला नदी।।"<br>
'''ब्रह्मपुराण - भारतवर्ष वर्णन प्रकरण - 19/31)'''