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इस राष्ट्रगान को संगीत प्रदान करने वाला व्यक्ति एक नेपाली है।
 
== ऐतिहासिक तथ्य एवं आलोचना==
मदन लाल वर्मा 'क्रान्त' की पुस्तक ''स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास'' (भाग-एक) ISBN 8177831224(Set) की पृष्ठ संख्या १५० पर ''भारत भाग्य विधाता'' शीर्षक से [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] का पूरा गीत इस तथ्यात्मक टिप्पणी के साथ दिया गया है-
"भारत के मुक्ति संग्राम में सन् १९११ का वर्ष राजनीतिक दृष्टि से सभी के लिये हर्ष का विषय था क्योंकि इसी वर्ष इंग्लैण्ड से [[जार्ज पंचम]] हिन्दुस्तान आये थे। बंग-भंग का निर्णय रद्द हुआ था जिसके कारण भारतीयों में अंग्रेजों के न्याय के प्रति विश्वास पैदा हुआ। साहित्यकार भी इससे अछूते नहीं रहे। [[बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन']] ने जार्ज पंचम की स्तुति में ''सौभाग्य समागम'', [[अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध']] ने ''शुभ स्वागत'', [[श्रीधर पाठक]] ने ''श्री जार्ज वन्दना'' तथा [[नाथूराम शर्मा 'शंकर']] ने ''महेन्द्र मंगलाष्टक'' जैसी हिन्दी में उत्कृष्ट भक्तिभाव की रचनायें लिखकर ''राजभक्ति'' प्रदर्शित की थी। फिर भला रवीन्द्रनाथ ठाकुर कैसे पीछे रहते! उन्होंने १९११ में ''भारत भाग्य विधाता'' गीत की रचना की। वे बहुत बडे आदमी थे, उनकी ऊँची पहुँच थी अतः जार्ज के स्वागत में उन्हें यह गीत पढने की सुविधा दी गयी। बाद में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने ''सर'' की उपाधि दी। यह अलग बात है कि १९१९ में ''जलियाँवाला बाग काण्ड'' से दुःखी होकर उन्होंने वह उपाधि वापिस लौटा दी।" पूरा गीत देने के पश्चात् जो ''नोट'' दिया गया वह इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है। नोट में लिखा है:"पूरे गीत में दो-दो विस्मयादिवोधक सम्बोधन चिन्ह (!!) केवल अन्तिम पंक्ति से पहली पंक्ति में हैं जो [[राजेश्वर]] (जार्ज पंचम) को विशेष रूप से सम्बोधित किये जाने का संकेत देते हैं।"
स्वागत'', [[श्रीधर पाठक]] ने ''श्री जार्ज वन्दना'' तथा [[नाथूराम शर्मा 'शंकर']] ने ''महेन्द्र मंगलाष्टक'' जैसी हिन्दी में उत्कृष्ट भक्तिभाव की
रचनायें लिखकर ''राजभक्ति'' प्रदर्शित की थी। फिर भला रवीन्द्रनाथ ठाकुर कैसे पीछे रहते! उन्होंने १९११ में ''भारत भाग्य विधाता'' गीत की रचना की। वे बहुत बडे आदमी थे, उनकी ऊँची पहुँच थी अतः जार्ज के स्वागत में उन्हें यह गीत पढने की सुविधा दी गयी। बाद में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने ''सर'' की उपाधि दी। यह अलग बात है कि १९१९ में ''जलियाँवाला बाग काण्ड'' से दुःखी होकर उन्होंने वह उपाधि वापिस लौटा दी।" पूरा गीत देने के पश्चात् जो ''नोट'' दिया गया वह इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है। नोट में लिखा है:"पूरे गीत में दो-दो विस्मयादिवोधक सम्बोधन चिन्ह (!!) केवल अन्तिम पंक्ति से पहली पंक्ति में हैं जो [[राजेश्वर]] (जार्ज पंचम) को विशेष रूप से सम्बोधित किये जाने का संकेत देते हैं।"
 
1911 तक भारत की राजधानी [[कोलकाता]] हुआ करता था। सन 1905 में जब [[बंगाल विभाजन]] को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये। इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया। रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा। उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों के लिए। रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है "जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता"। इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था।