"मलय रॉय चौधुरी": अवतरणों में अंतर

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==मलय का साहित्य==
[[मलय रायचौधुरी]]का भूखी पीढी का दौर साठ के दशक तक ही चला। इसका प्रधान कारण यह है कि उनके खिलाफ जो मुकदमा चला था उसमें उनके आंदोलन के बन्धुगण, जैसे कि शैलेश्वर घोष, सुभाष घोष, उत्पलकुमार बसु, शक्ति चट्टोपाध्याय, सन्दीपन चट्टोपाध्याय उनके विरुद्ध सरकारी गवाह बन बैठे थे। कहा जा सकता है कि भूखी पीढी आंदोलन इन लोगों के सरकारी गवाह होने पर बिखर गया। मलय के लिये यह सचेत होने का पथ बना। वे अकेले अपने-आप में साहित्य का एक जगत बना कर चल दिये। उनके लेखनप्रक्रिया में भी परिवर्तन आया। उन्होंने करीब दस साल पढाई में बिताया और एक नवीण रुप में कोलकाता आये। उनकी कविता, कहानीयाँ, उपन्यास, इत्यादि सम्पूर्णत: अलग थे। इस नये दौर को लोगों ने ''अधुनान्तिक'' दौर कहा है। मलय अपने नये रूप में थे [[बहुसंस्कृतिवाद]] के कट्टर समर्थक जो उनके लेखन में पूरी तरह झलकता है, और यह है उनके बचपन में बिताये हुए इमलितला के परिवेश की देन। कोलकाता के साहित्य बाजार में चलनेवाले बिकाउ-लेखन से एक अलग ही जगत है उनका। वह परवाह नहीं करते कि उनके किताबें हजारों की संख्या में बिके। परन्तु उनका एक पाठक-समाज बन गया है जो उनके पुस्तकों को ढून्ढ ही लेते हैं। कोलकाता विश्वविद्यालय के बांग्ला भाषा विभाग के प्रधान डाक्टर तरुण मुखोपाध्याय का कहना है कि मलय अपने नये रूप में साहित्य में ताजे हवा को तूफान में बदलने वाले झोंके की तरह हैं।
==फिल्म==
चित्र परिचालक श्रीजित मुखर्जी '''बाइशे श्राबोण''' नामसे एक फिल्म बनायी हैं जिसमें कवि मलय रायचौधुरीको चित्रित किया गया है। मलयके चरित्र में अभिनय किया है जाने-माने परिचालक '''गौतम घोष'''।
 
==भुखी पीढी सृजनकर्मों का कापिराइट==
भुखी पीढी आंदोलनकारियों के सृजनकर्मों का कापिराइट नहीं होता है। उन लोगों का कहना है कि भारत में यदि [[महाभारत]], [[रामायण]], [[गीता]], [[रामचरितमानस]] आदि का कापिराइट कभी था ही नहीं तो हम क्यों यह उपनिवेशवादी अवधारणा को स्वीकारें। [[मलय रायचौधुरी]] के किताबों में यह घोषणा लिखा रहता है।