"रहस्यवाद": अवतरणों में अंतर

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'''रहस्यवाद''' हिंदी या समस्त भारतीय साहित्य का एक साहित्यिक आंदोलन है जिसका समय १९५० के आसपास समझा जाता है। इसका जन्म छायावाद के बाद हुआ। कुछ लोग इसको [[छायावाद]] की ही एक शाखा मानते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि रहस्यवाद और छायावाद आपस में मिलेजुले हैं। रहस्यवाद के अंतर्गत प्रेम के कई स्तर होते हैं।
*प्रथम स्तर है अलौकिक सत्ता के प्रति आकर्षण।
*द्वितीय स्तर है- उस अलौकिक सत्ता के प्रति दृढ अनुराग।
*तृतीय स्तर है विरहानुभूति।
*चौथा स्तर है- मिलन का मधुर आनंद।
 
महादेवी और निराला में आध्यात्मिक प्रेम का मार्मिक अंकन मिलता है। यद्यपि छायावाद और रहस्यवाद में विषय की दृष्टि से अंतर है। जहाँ रहस्यवाद का विषय - आलंबन अमूर्त, निराकार ब्रह्म है, जो सर्व व्यापक है, वहाँ छायावाद का विषय लौकिक ही होता है।
 
[[श्रेणी:साहित्यिक आंदोलन]]