"चैतन्य महाप्रभु": अवतरणों में अंतर

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==जन्म तथा प्रारंभिक जीवन==
 
[[चैतन्य चरितामृत]] के अनुसार चैतन्य महाप्रभु का जन्म सन [[१४८६]] की [[फाल्गुन]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ला]] [[पूर्णिमा]] को [[पश्चिम बंगाल]] के [[नवद्वीप]] (नादिया) नामक गांव में हुआ,<ref name = "जागरण "/> जिसे अब [[मायापुर]] कहा जाता है। इनका जन्म संध्याकाल में [[सिंह]] लग्न में [[चंद्र ग्रहण]] के समय हुआ था। उस समय बहुत से लोग शुद्धि की कामना से हरिनाम जपते हुए [[गंगा]] स्नान को जा रहे थे। तब विद्वान ब्राह्मणों ने उनकी जन्मकुण्डली के ग्रहों और उस समय उपस्थित शगुन का फलादेश करते हुए यह भविष्यवाणी की, कि यह बालक जीवन पर्यन्त हरिनाम का प्रचार करेगा। <ref name = "जागरण "/> यद्यपि बाल्यावस्था में इनका नाम विश्वंभर था, परंतु सभी इन्हें निमाई कहकर पुकारते थे, क्योंकि कहते हैं, कि ये [[नीम]] के पेड़ के नीचे मिले थे। गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें [[गौरांग]], गौर हरि, गौर सुंदर आदि भी कहते थे।
 
इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र व मां का नाम शचि देवी था।<ref name = "जागरण ">{{cite web |url= http://in.jagran.yahoo.com/dharm/?page=article&articleid=3400&category=12|title= भगवन्नाम के अमर प्रचारक चैतन्य महाप्रभु|accessmonthday= |accessyear= |accessmonthday= |accessdaymonth = |accessyear= |author= डॉ.अतुल टण्डन|last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= |year= |month= |format= एचटीएम|work= |publisher= याहू जागरण|pages= |language= हिन्दी |archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref> निमाई बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे। साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे। इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था। बहुत कम आयु में ही निमाई [[न्याय]] व [[व्याकरण]] में पारंगत हो गए थे। इन्होंने कुछ समय तक नादिया में स्कूल स्थापित करके अध्यापन कार्य भी किया। निमाई बाल्यावस्था से ही भगवद्चिंतन में लीन रहकर [[राम]] व [[कृष्ण]] का स्तुति गान करने लगे थे। १५-१६ वर्ष की अवस्था में इनका विवाह लक्ष्मीप्रिया के साथ हुआ। सन [[१५०५]] में सर्प दंश से पत्नी की मृत्यु हो गई। वंश चलाने की विवशता के कारण इनका दूसरा विवाह [[नवद्वीप]] के राजपंडित सनातन की पुत्री विष्णुप्रिया के साथ हुआ। जब ये किशोरावस्था में थे, तभी इनके पिता का निधन हो गया।<ref>{{cite web |url= http://www.amarujala.com/dharam/default1.asp?foldername=20060316&sid=1|title= गौड़ीय संप्रदाय के प्रवर्तक|accessmonthday=[[11 मार्च]]|accessyear=[[2008]]|format= एएसपी|publisher= अमर उजाला|language=}}</ref>
 
==धार्मिक दीक्षा==
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Image:Panca-tattva Altar.jpg|thumb|यह एक इंटरैक्टिव '''''क्लिक योग्य''''' चित्र है, देखने हेतु '''चरण कमलों पर क्लिक''' करें। मध्य में श्री '''[[कृष्ण]]''' '''[[चैतन्य]]''' (मध्य), श्री [[नित्यानंद]] प्रभु (नीले वस्त्र में), श्री [[अद्वैताचार्य]] (दाड़ी वाले), श्री [[गदाधर]] पंडित ([[पर्पल]]धोतीमें), श्री [[श्रीवास ठाकुर|श्रीवास]] पंडित (केसरिया धोती एवं सिर मुंडा हुआ) शोभित हैं। '''पंच तत्त्व''' विभूतियाँ: [[चैतन्य महाप्रभु]], [[नित्यानंद]], [[अद्वैताचार्य]], [[गदाधर]] एवं [[श्रीवास ठाकुर|श्रीवास]], [[वैष्णव]] वेदी पर स्थापित हैं|300 px|alt= चरण कमलों पर क्लिक करें
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[[चैतन्य चरितामृत]] के अनुसार चैतन्य महाप्रभु का जन्म सन [[१४८६]] की [[फाल्गुन]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ला]] [[पूर्णिमा]] को [[पश्चिम बंगाल]] के [[नवद्वीप]] (नादिया) नामक गांव में हुआ,<ref name = "जागरण "/> जिसे अब [[मायापुर]] कहा जाता है। इनका जन्म संध्याकाल में [[सिंह]] लग्न में [[चंद्र ग्रहण]] के समय हुआ था। उस समय बहुत से लोग शुद्धि की कामना से हरिनाम जपते हुए [[गंगा]] स्नान को जा रहे थे। तब विद्वान ब्राह्मणों ने उनकी जन्मकुण्डली के ग्रहों और उस समय उपस्थित शगुन का फलादेश करते हुए यह भविष्यवाणी की, कि यह बालक जीवन पर्यन्त हरिनाम का प्रचार करेगा। <ref name = "जागरण "/> यद्यपि बाल्यावस्था में इनका नाम विश्वंभर था, परंतु सभी इन्हें निमाई कहकर पुकारते थे, क्योंकि कहते हैं, कि ये [[नीम]] के पेड़ के नीचे मिले थे। गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें [[गौरांग]], गौर हरि, गौर सुंदर आदि भी कहते थे।
 
इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र व मां का नाम शचि देवी था।<ref name = "जागरण ">{{cite web |url= http://in.jagran.yahoo.com/dharm/?page=article&articleid=3400&category=12|title= भगवन्नाम के अमर प्रचारक चैतन्य महाप्रभु|accessmonthday= |accessyear= |accessmonthday= |accessdaymonth = |accessyear= |author= डॉ.अतुल टण्डन|last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= |year= |month= |format= एचटीएम|work= |publisher= याहू जागरण|pages= |language= हिन्दी |archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref> निमाई बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे। साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे। इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था। बहुत कम आयु में ही निमाई [[न्याय]] व [[व्याकरण]] में पारंगत हो गए थे। इन्होंने कुछ समय तक नादिया में स्कूल स्थापित करके अध्यापन कार्य भी किया। निमाई बाल्यावस्था से ही भगवद्चिंतन में लीन रहकर [[राम]] व [[कृष्ण]] का स्तुति गान करने लगे थे। १५-१६ वर्ष की अवस्था में इनका विवाह लक्ष्मीप्रिया के साथ हुआ। सन [[१५०५]] में सर्प दंश से पत्नी की मृत्यु हो गई। वंश चलाने की विवशता के कारण इनका दूसरा विवाह [[नवद्वीप]] के राजपंडित सनातन की पुत्री विष्णुप्रिया के साथ हुआ। जब ये किशोरावस्था में थे, तभी इनके पिता का निधन हो गया।<ref>{{cite web |url= http://www.amarujala.com/dharam/default1.asp?foldername=20060316&sid=1|title= गौड़ीय संप्रदाय के प्रवर्तक|accessmonthday=[[11 मार्च]]|accessyear=[[2008]]|format= एएसपी|publisher= अमर उजाला|language=}}</ref>
 
==धार्मिक दीक्षा==
सन [[१५०९]] में जब ये अपने पिता का श्राद्ध करने [[गया]] गए, तब वहां इनकी भेंट ईश्वरपुरी नामक संत से हुई। उन्होंने निमाई से कृष्ण-कृष्ण रटने को कहा। तभी से इनका सारा जीवन बदल गया और ये हर समय भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहने लगे। भगवान श्रीकृष्ण के प्रति इनकी अनन्य निष्ठा व विश्वास के कारण इनके असंख्य अनुयायी हो गए। सर्वप्रथम [[नित्यानंद प्रभु]] व [[अद्वैताचार्य महाराज]] इनके शिष्य बने। इन दोनों ने निमाई के भक्ति आंदोलन को तीव्र गति प्रदान की। इन्होंने अपने इन दोनों शिष्यों के सहयोग से [[ढोलक]], [[मृदंग]], [[झाँझ]], [[मंजीरा|मंजीरे]] आदि वाद्य यंत्र बजाकर व उच्च स्वर में नाच-गाकर हरि नाम संकीर्तन करना प्रारंभ किया।
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