"चैतन्य महाप्रभु": अवतरणों में अंतर

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==विरासत==
[[File:Gaura nitai radhadesh.jpg|thumb|left|चैतन्य महाप्रभु (दाएं) एवं नित्यानंद (बायें) की [[बेल्जियम]] में राधादेश स्थित मूर्तियाँ। ]]
 
चैतन्य महाप्रभु ने लोगों की असीम लोकप्रियता और स्नेह प्राप्त किया कहते हैं कि उनकी अद्भुत भगवद्भक्ति देखकर [[जगन्नाथ पुरी]] के राजा तक उनके श्रीचरणों में नत हो जाते थे। [[बंगाल]] के एक शासक के मंत्री रूपगोस्वामी तो मंत्री पद त्यागकर चैतन्य महाप्रभु के शरणागत हो गए थे। उन्होंने कुष्ठ रोगियों व दलितों आदि को अपने गले लगाकर उनकी अनन्य सेवा की। वे सदैव हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देते रहे। साथ ही, उन्होंने लोगों को पारस्परिक सद्भावना जागृत करने की प्रेरणा दी। वस्तुत: उन्होंने जातिगत भेदभाव से ऊपर उठकर समाज को मानवता के सूत्र में पिरोया और भक्ति का अमृत पिलाया। वे [[गौड़ीय संप्रदाय]] के प्रथम आचार्य माने जाते हैं। उनके द्वारा कई ग्रंथ भी रचे गए। किंतु आज एक शिक्षाष्टक के सिवाय अन्य कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। उन्होंने [[संस्कृत भाषा]] में भी तमाम रचनाएं कीं। उनका मार्ग प्रेम व भक्ति का था। वे [[नारद]] जी की भक्ति से अत्यंत प्रभावित थे, क्योंकि नारद जी सदैव 'नारायण-नारायण` जपते रहते थे।
 
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कृष्ण केशव, कृष्ण केशव, कृष्ण केशव, पाहियाम। राम राघव, राम राघव, राम राघव, रक्षयाम॥
</blockquote>
 
==षण्गोस्वामी==
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