"प्रहसन": अवतरणों में अंतर
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[[काव्य]] को मुख्यत: दो वर्गो में विभक्त किया गया है - श्रव्य काव्य और दृश्य काव्य। श्रव्य काव्य के अंतर्गत [[साहित्य]] की वे सभी विधाएँ आती हैं जिनकी रसानुभूति श्रवण द्वारा होती है जब कि दृश्य काव्य का वास्तविक आनंद मुख्यतया नेत्रों के द्वारा प्राप्त किया जाता है अर्थात् [[अभिनय]] उसका व्यावर्तक धर्म है। [[भरतमुनि]] ने दृश्य काव्य के लिये "नाट्य" शब्द का व्यवहार किया है। आचार्यों ने "नाट्य" के दो रूप माने हैं - [[रूपक]] तथा
== प्रहसन के भेद ==
भारतीय [[काव्यशास्त्र]] में प्रहसन के स्वरूप-विवेचन पर पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। [[भरत मुनि]] ने इसके दो भेद किए हैं - शुद्ध प्रहसन और संकीर्ण प्रहसन। रूपक का वह भेद जिसमें तापस, सन्यासी, पुरोहित, भिक्षु, श्रोत्रिय आदि नायकों और नीच प्रकृति के अन्य व्यक्तियों के मध्य परिहास चर्चा होती है, प्रहसन कहलाता है। निकृष्ट श्रेणी के पात्रों का परिहासपूर्ण अभिनय संकीर्ण प्रहसन के अंतर्गत आता है। धनंजय तथा शारदातनय ने भी लगभग इसी आधार पर प्रहसन के तीन भेज किए हैं - '''शुद्ध, वैकृत
== प्रहसन की कथा ==
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