"मन्दिर": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Temple khajuraodkd.jpg|thumb|right|300px|मन्दिर]]'''मन्दिर''' हिन्दुओं का [[उपासनास्थल]] होता है ।
 
मन्दिर अराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित की हुई जगह या देवस्थान है.है। यानी जिस जगह किसी आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिंतन किया जाए या वहां मूर्ति इत्यादि रखकर पूजा-अर्चना की जाए उसे मंदिर कहते हैं.हैं। और '''मठ''' वह स्थान है जहां किसी सम्प्रदाय, धर्म या परंपरा विशेष में आस्था रखने वाले शिष्य आचार्य या धर्मगुरु अपने सम्प्रदाय के संरक्षण और संवर्द्धन के उद्देश्य से धर्म ग्रन्थों पर विचार विमर्श करते हैं या उनकी व्याख्या करते हैं जिससे उस सम्प्रदाय के मानने वालों का हित हो और उन्हें पता चल सके कि उनके धर्म में क्या है.है। उदाहरण के लिए बौद्ध विहारों की तुलना हिन्दू मठों या ईसाई मोनेस्ट्रीज़ से की जा सकती है. लेकिन 'मठ' शब्द का प्रयोग [[शंकराचार्य]] के काल यानी सातवीं या आठवीं शताब्दी से शुरु हुआ माना जाता है.
 
[[तमिल भाषा]] में मंदिर को ''कोईल'' या ''कोविल'' (கோவில் ) कहते हैं ।
 
== मंदिर की निर्माण ==
पौराणिक सन्दर्भ में देखा जावेजाय तो मंदिरों का निर्माण, उनकी संख्या और बनावट के विशय में यही कहा जा सकता है कि, यद्यपि मंदिरों का अस्तित्व था तो सही किन्तु उनका उल्लेख इतना कम है कि, निशिचत रूप से यह कहा जा सकता है कि, लोकजीवन में मंदिरों का महत्त्व उतना नहीं था जितना आत्मचिन्तन और मनन का। अधिकांश मंदिर व्यäगित उपासना स्थलों के रूप में थे। यही कारण जान पड़ता है कि, मंदिरों के असितत्त्व का सार्वजनिक असितत्त्व दृशिटगोचर नहीं होता। रामायण काल में श्रीराम अपने महल में ही एक विशेश भाग में अपने पूर्वजों की प्रतिमाओं के समक्श समय-समय पर उनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन के निमित्त प्रार्थना करने जाते हैं और स्वयंवर से पूर्व सीता भी अपनी सखियों और दासियों के साथ गौरी पूजा के लियेे राजा जनक के महलों की वाटिका में ही सिथत गौरी मंदिर में पूजा के लिये जाती हैं, किन्तु अयोध्या या जनकपुरी में किसी अन्य मंदिर का उल्लेख नहीं होना उस काल में मंदिरों के असितत्व के संबन्ध में इंगित करता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि, राजा जनक को वैष्णव अर्थात विष्णु भä बताया गया है किन्तु उनके प्रासाद या वाटिका में गौरी का मंदिर किस तथ्य की ओर इंगित करता है? क्योंकि ऐसे शिव मंदिर तो हैं जिनमें सती अथवा शिव परिवार के अन्य सदस्य नहीं है किन्तु केवल सती अथवा पार्वती का कोई भी मंदिर नहीं है। कामरूप कामाख्या, हिंगलाज, ज्वाला, नैना और वैष्णोदेवी आदि शä पिीठोंशक्तिपीठों को सती मंदिर कहा जावे तो बात और है। इसी प्रकार [[महाभारत]] में यधपि बहुचर्चित किन्तु मात्र दो घटनाओं में कृष्ण के साथ रूक्मणी और अर्जुन के साथ सुभद्रा के भागने के समय दोनों ही नायिकाओं द्वारा देवी पूजा के लियेेलिये वन में सिथतस्थित गौरी माता (माता पार्वती) के मंदिर की चर्चा है।
 
[[गुप्तकाल]] (चौथी से छठी शताबिद) में मंदिरों के निर्माण का उत्तरोत्तर विकास दृशिट में आता है। पहले लकड़ी के मंदिर बनते थे या बनते होंगे लेकिन जल्दी ही भारत के अनेक स्थानों पर पत्थर और र्इंट से मंदिर बनने लगे। 7वीं शताबिद तक देश के आर्य संस्कृति वाले भागों में पत्थरों से मंदिरों का निर्माण होना पाया गया है। चौथी से छठी शताबिद में गुप्तकाल में मंदिरों का निर्माण बहुत æ्रुतद्रुत गति से हुआ। मूल रूप से हिन्दू मंदिरों की शैली बौद्ध मंदिरों से ली गयी होगी जैसा कि उस समय के पुराने मंदिरो में मूर्तियों को मंदिर के मध्य में रखा होना पाया गया है और जिनमें बौद्ध स्तूपों की भांति परिक्रमा मार्ग हुआ करता था। गुप्तकालीन बचे हुए लगभग सभी मंदिर अपेक्शाकृत छोटे हैं जिनमें काफी मोटा और मजबूत कारीगरी किया हुआ एक छोटा केन्द्रीय कक्श है, जो या तो मुख्य द्वार पर या भवन के चारों ओर बरामदे से युद्ध है। गुप्तकालीन आरमिभक मंदिर , उदाहरणार्थ सांची के बौद्ध मंदिरों की छत सपाट है; तथापि मंदिरों की उत्तर भारतीय शिखर शैली भी इस काल में ही विकसित हुयी और शनै: शनै: इस शिखर की ऊंचार्इ बढती रही। 7वीं शताबिदशताब्दी में बौद्ध[[बोध गया]] में निर्मित बौद्ध मंदिर की बनावट और ऊंचा शिखर गुप्तकालीन भवन निर्माण शैली के चरमोत्कर्श का प्रतिनिधित्व करता है।
 
बौद्ध और जैन पंथियों द्वारा धार्मिक उíेष्योंउद्देश्यों के निमित्त Ñत्रिमकृत्रिम गुफाओं का प्रयोग किया जाता था और हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा भी इसे आत्मसात कर लिया गया था। फिर भी हिन्दुओं द्वारा गुफाओं में निर्मित मंदिर तुलनात्मक रूप से बहुत कम हैं और गुप्तकाल से पूर्व का तो कोर्इ भी साक्ष्य इस संबन्ध में नहीं पाया जाता है। गुफा मंदिरों और शिलाओं को काटकर बनाये गये मंदिरों के संबंध में अधिकतम जानकारी जुटाने का प्रयास करते हुए हम जितने स्थानों का पता लगा सके वो पृथक सूची में सलंग्न की है। मæासमद्रास (वर्तमान 'चेन्नर्इचेन्नई' ) के दक्शिणदक्षिण में पल्लवों के स्थान [[महाबलिपुरम]] में, 7वीं शताबिद में निर्मित अनेक छोटे मंदिर हैं जो चटटानोंचट्टानों को काटकर बनाये गये हैं और जो तमिल क्शेत्रक्षेत्र में तत्कालीन धार्मिक भवनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
 
मंदिरों का असितत्व और उनकी भव्यता [[गुप्त राजवंश]] के समय से देखने को मिलती है। यह कहना अतिशयोäअतिशयोक्ति निहींनहीं होगा कि गुप्त काल से हिन्दू मंदिरों का महत्त्व और उनके आकार में उल्लेखनीय विस्तार हुआ तथा उनकी बनावट पर स्थानीय वास्तुकला का विशेश प्रभाव पड़ा। उत्तरी भारत मेंंमें हिन्दू मंदिरों की उत्कृष्टता उड़ीसा तथा उत्तरी मध्यप्रदेश के खजुराहो में देखने को मिलती है। उड़ीसा के भुवनेष्वर में सिथत लगभग 1000 वर्शवर्ष पुराना लिंगराजा का मंदिर वास्तुकला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। हालांकि, 13वीं शताबिद में निर्मित [[कोणार्क]] का [[सूर्य मंदिर]] कोणार्क इस क्शेत्रक्षेत्र का सबसे बड़ा और विष्व विख्यातविश्वविख्यात मंदिर है। इसका शिखर इसके आरंमिभक दिनों में ही टूट गया था और आज केवल प्रार्थना स्थल ही शेश बचा है। काल और वास्तु के दृशिटकोणदृष्टिकोण से [[खजुराहो]] के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मंदिर 11वीं शताबिदशताब्दी में बनाये गये थे। गुजरात और राजस्थान में भी वास्तु के स्वतन्त्रष्शैलीस्वतन्त्र शैली वाले अच्छे मंदिरों का निर्माण हुआ किन्तु उनके अवशेशअवशेष उड़ीसा और खजुराहो की अपेक्शाअपेक्षा कम आकर्शकआकर्षक हैं। प्रथम दशाब्ददशाब्दी के अन्त में वास्तु की दक्शिणदक्षिण भारतीय शैली तन्जौर[[तंजौर]] (प्राचीन नाम तन्जावुरतंजावुर) के राजराजेष्वर[[राजराजेश्वर मंदिर]] के निर्माण के समय अपने चरम पर पहुंच गयी थी। अध्ययन की सुविधा के दृशिटकोण से भगवान व राजा और मंदिर व महलों में समानता का अध्ययन हम अगले पृष्ठों में करेंगें।
 
==यह भी देखें ==