"टमकोर": अवतरणों में अंतर

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गाँव में व्यापर की अछि संभावनाएं थी जिससे आगे चलकर महाजन परिवार भी आकर बसने लगे ,महाजनों में चोरडिया परिवार ज्यादा थे ,पर सबसे पहले महाजनों में गिडिया परिवार आकर बसा था ,लगभग २०० वर्षो पूर्व दुलीचंद जी चोरडिया बहल (वर्तमान में हरियाणा ) से आकर बस गए उसके साथ कालांतर में उनके भाई आदि सभी यहाँ आकर बस गए |ठाकुरों का राज-पाट का काम सँभालने के लिए यहाँ एक गढ़ का निर्माण किया गया ,पिने के पानी के लिए कुंडो(जमीन में वर्षात के पानी को एकत्रित करने के लिए पक्के टेंक )पर निर्भरता थी व् अभी भी वोही स्थिति है ,भुगार्विय जल नमकीन व् खारा होने से वर्षात पर खेती एवं पिने के पानी के लिए पूर्ण तया निर्भरता थी | अनुकूल वारिश नहीं होने पर जमीनी पानी पीना पड़ता एवं अनेको बिमारियों का खतरा हो जाता था ,इन सभी के मध्य नजर उस समय के ठाकुर जवाहर सिहं ने लोगों की शोच जाने की जगह को पानी की समस्या से निजात पाने के लिए एक पक्के जोहड़े का निर्माण के लिए सन १७१७ में चुना ,और लोगो की कुछ समस्या कम हुई |इस प्रकार गढ़ (किले ) का निर्माण जोहड़े के निर्माण (१७१७ )से पहले हुआ था ,दोनों निर्माण आज भी उसी (लगभग)स्थिति में देखे जा सकते है |
कालांतर में टमकोर के क्षेत्र का कुछ हिसा लेकर ठाकुर जवाहर सिंह ने जवाहरपुरा गाँव अलग से बसाया ,टमकोर के अधीन अठारह हजार बीघा जमीन थी ,उसमे से छः हजार बीघा जमीन पर जवाहरपुरा बसाया गया |
गाँव की प्रशासनिक व्यवस्था के लिए किलेदार होते थे,सहायक के तौर पर गाँव के प्रमुख व्यक्ति को पटवारी बनाया जाता था ,पटवारी के रूप में गिडिया परिवार एवं चोरडिया परिवार ने काफी समय तक अपनी सेवाएँ दी ,तत्पश्च्यात श्री रावतमल जी अगरवाल को पटवारी का दायित्व सोंपा गया,वो देश की
स्वतंत्रता के बाद प्रथम सरपंच चुने गए ,लेकिन उनके नाम के साथ पटवारी जीवन भर जुदा रहा वो पटवारी जी के नाम से ही जाने जाते रहे |
विक्रम संवत १७१७ से पिने के पानी का स्रोत जवाहर सागर जोह्ड़ा रहा जो वर्तमान में भी लगभग पूर्व हालत में है पर पानी का उपयोग पिने के आलावा अन्य उपयोग में लिया जारहा है ,कारण गाँव के लोगों ने कुंडो का निर्माण करना प्रारंभ कर दिया था ,वर्तमान में शायद राजस्थान प्रदेश में सबसे अधिक कुंडो की संख्या इसी क्षेत्र में (टमकोर के आस पास ) होंगे |
गाँव की आबादी लगभग ८००० की है,उसमे परिवारों के हिस्साब से ओसवाल और अगरवाल परिवार बहुतायत से है,ओसवाल में सभी परिवार तेरापंथ संप्रदाय के है,टमकोर को मंदिरों का गाँव कहा जाता है ,यहाँ प्राय सभी देवी देवताओं के मंदिर भव्य रूप से बनवाये गए है ,मस्जिद,आर्य समाज,ओसवाल भवन,आदि सभी धर्मो के लोग भाईचारे के साथ निवास कर रहे है |
आध्यात्मक द्रष्टि से टमकोर का अग्रणीय स्थान है -इस धरा से २७ भाई -बहन तेरापंथ जैन धर्म संघ में
दीक्षित हुए है ,जिनमे धर्म संघ के दशम आचार्य आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की आज विश्व के उच्च कोटि के दार्शनिको में गिनती होती है |
टमकोर में धार्मिक द्रष्टि से सनातन धर्मावलम्बियों का बाहुल्य है,जहाँ आर्य समाज का अच्छा प्रभाव है वहीँ तेरापंथ जैन समुदाय ने विश्व को आचार्य महाप्रज्ञ जैसे महान संत ,महान दार्शनिक देने का गौरव हासिल है |यहाँ सभी धर्मावलम्बियों में परस्पर सौहार्द के वातावरण से विवधता में एकता का परिचय मिलता है जो एक मिशाल है |
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"https://hi.wikipedia.org/wiki/टमकोर" से प्राप्त