"सपुष्पक पौधा": अवतरणों में अंतर

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=== पत्तियाँ ===
संवृतबीजी के पौधों में [[पत्ती|पत्तियाँ]] भी अन्य पौधों की तरह विशेष कार्य के लिये होती हैं। इनका प्रमुख कार्य भोजन बनाना है। इनके भाग इस प्रकार है : टहनी से निकलकर पर्णवृत (petiole) होता है, जिसके निकलने के स्थान पर अनुपर्ण (stupule) भी हो सकते हैं। पत्तियों का मुख्य भाग चपटा, फैला हुआ पर्णफलक (lamina) है। इनमें शिरा कई प्रकार से विन्यासित रहती है। पत्तियों के आकार कई प्रकार के मिलते हैं। पत्तियों मे छोटे छोटे छिद्र, या रंध्र (stomata), होते हैं। अनुपर्ण भी अलग अलग पौधों में कई प्रकार के होते हैं, जैसे गुलाब, बनपालक, स्माइलेक्स, इक्ज़ारा इत्यादि में। नाड़ीविन्यास जाल के रूप में जालिका रूपी (retiulatereticulate) तथा समांतर (parallel) प्रकार का होता है। पहला विन्यास मुख्यत: द्विबीजीपत्री में और दूसरा विन्यास एकबीजपत्री में मिलता है। इन दोनों के कई रूप हो सकते हैं, जैसे जालिकारूप विन्यास आम, पीपल तथा नेनूआ की पत्ती में, और समांतररूप विन्यास केला, ताड़, या केना की पत्ती में। शिराओं द्वारा पत्तियों का रूप आकार बना रहता है, जो इन्हें चपटी अवस्था में फैले रखने में मदद देता है और शिराओं द्वारा भोजन, जल आदि पत्ती के हर भाग में पहुँचते रहते हैं। पत्तियाँ दो प्रकार की होती हैं। साधारण तथा संयुक्त, बहुत से संवृतबीजियों में पत्तियाँ विभिन्न प्रकार से रूपांतरित हो जाती हैं, जैसे मटर में ऊपर की पत्तियाँ लतर की तरह प्रतान (tendril) का रूप धारण करती हैं, या बारबेरी (barberry) में काँटे के रूप में, विगनोनियाँ में अंकुश (hook) की तरह और नागफनी, धतूरा, भरभंडा, भटकटइया में काँटे के रूप में बदल जाती हैं। घटपर्णी (nephenthes) में पत्तियाँ सुराही की तरह हो जाती हैं, जिसमें छोटे कीड़े फँसकर रह जाते हैं और जिन्हें यह पौधा हजम कर जाता है। पत्तियों के अंदर की बनावट इस प्रकार की होती हैं कि इनके अंदर पर्णहरित, प्रकाश की ऊर्जा को लेकर, जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड को मिलाकर, अकार्बनिक फ़ॉस्फ़ेट की शक्तिशाली बनाता है तथा शर्करा और अन्य खाद्य पदार्थ का निर्माण करता है।
 
=== पुष्प ===
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== संवृतबीजियों का वर्गीकरण ==
संवृतबीजियों का वर्गीकरण कई वनस्पति-वर्गीकरण-वैज्ञानिकों (taxonomists) द्वारा समय समय पर हुआ है। ईसा से लगभग 300 वर्ष पूर्व थियोफ्रस्टस ने कुछ लक्षणों के आधार पर वनस्पतियों का वर्गीकरण किया था। भारत में बेंथम और हूकर तथा ऐंगलर प्रेंटल ने वर्गीकरण किया है। सभी ने संवृतबीजियों को एकबीजपत्री और द्विबीजपत्रियों में विभाजित किया है।
* एकबीजपत्री को पेटालायडीपेतालोईदेऐ (petaloideae), स्पैडिसिफ्लोरीस्पादीकीफ़्लोरै (spadicifloracespadiciflorae) तथा ग्लुमिफ्लोरीग्लूमीफ़्लोरै (glumiflorae) में विभाजित किया है।
* द्विबीजपत्री को तीन वर्गों, पॉलिपेटैलीपोलीपेतालै (polypetalae), गैमोपेटैलीगामोपेतालै (gamopetalae) तथा मोनोक्लोमिडीमोनोख्लामिउदेऐ (monchlamydeaemonochlamydeae) इत्यादि मे विभाजित किया है।
 
पेटालयडी के अंतर्गत ऐसा एकबीजी कुल रखा जाता है जिसके पौधों के पुष्प में दलचक्र हों, जैसे केना, कमेलाइना, प्याज इत्यादि। स्पैडिसिफ्लोरी में स्पैडिक्सस्पादीक्स् (spadix) प्रकार का पुष्पक्रम पाया जाता है, जैस केला में। ग्लुमिफ्लोरी में मुख्य कुल ग्रैमिनीग्रामीनेऐ (graminaeaegramineae) और साइप्रेसी है। ग्रैमिनी तो संसार का सर्वमान्य तथा उपयोगी कुल है। इसके सदस्य मुख्यत: मनुष्य तथा पालतू पशु, गाय, भैंस इत्यादि के आहार के रूप में काम आते हैं। जौ, गेहूँ, मक्का, बाजरा, ज्वार, धान, दूब, डाइकैथियमदीखान्थ्युम् (dichanthium), मूँज, पतलो, खस इसी कुल के सदस्य हैं। एकबीजपत्री के अन्य उदाहरण, ताड़, खजूर, ईख, बाँस, प्याज, लहसुन इत्यादि है।
 
द्विबीजपत्री पौधों की तो कई हजार जातियाँ पाई जाती हैं। इनके अंतर्गत कई कुल हैं और प्रत्येक कुल में अनेक पेड़ पौधे हैं।