"वैश्लेषिक ज्यामिति": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Punktkoordinaten.PNG|300px|right|thumb|कार्तीय (कार्टीजियन) निर्देशांक प्रणाली]]
17वीं शताब्दी के मध्य में फ्रांसीसी गणितज्ञ [[डेकार्ट]] (Descartes) ने ज्यामिति में [[बीजगणित]] का प्रयोग कर इसे बहुत शक्तिशाली बना दिया। उसने पहले दो काटती हुई रेखाएँ लीं, जिन्हें अक्ष कहते हैं। किसी बिंदु की इन रेखाओं के समांतर नापी हुई दूरी दो संख्याओं य र से उसका स्थान निश्चय किया। ये रेखाएँ बिंदु के निर्देशांक कहलाती हैं। इन निर्देशांकों की सहायता से प्रत्येक ज्यामितिय तथ्य को [[बीजगणित|बीजगणितीय]] [[समीकरण]] द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। इस ज्यामिति का कई दिशाओं में विकास हुआ।
पहली दशा में तो ज्यामिति का व्यापक रूप सामने आया, जैसे एक घात का समीकरण एक [[सरल रेखा]] प्रदर्शित करता है। इसी प्रकार दो घात का समीकरण एक [[शांकव]] (conic) प्रदर्शित करता है। इसी प्रकार तीन, चार और उच्चतर घातों के समीकरणों का अध्ययन होने लगा और उनके संगत वक्रों के गुणों का विवेचन पहले से बहुत सरल हो गया। तल के वक्रों तक ही नहीं, अवकाश (space) के वक्रों का भी अध्ययन संभव हो गया। इसके लिये एक बिंदुगामी तीन समतलों से किसी बिंदु की दूरियों य र ल (x, y, z) न उसका स्थान निश्चित करते हैं और प्रत्येक बिंदुपथ को य, र, ल (x, y, z) में एक समीकरण द्वारा प्रदर्शित करते हैं। इन समीकरणों के विवेचन से तलों ओर वक्रों के गुणों का अध्ययन सरलता से होता है।
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