"ज़ाक देरिदा": अवतरणों में अंतर

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'''ज़ाक डेरिडा''' (15 जुलाई 1930 – 8 अक्तूबर 2004) अल्जीरिया में जन्में एक फ्रांसीसी दार्शनिक थे जिन्हें विरचना (deconstruction) के सिद्धांत के लिए जाना जाता है। उनके विशाल लेखन कार्य का साहित्यिक और यूरोपीय दर्शन पर गहन प्रभाव पड़ा है। ''Of Grammatology'' उनकी सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक मानी जाती है।
 
== जीवन ==
डेरिडा फ्रेंच अल्जीरिया में एक यहूदी परिवार में 15 जुलाई 1930 को पैदा हुए। वे पाँच बच्चों के परिवार में तीसरे स्थान पर थे। उनका पहला नाम जैकी था, लेकिन बाद में उन्होंने अधिक औपचारिक नाम ज़ाक अपना लिया।<ref>[http://books.guardian.co.uk/obituaries/story/0,11617,1324460,00.html Obituary in ''The Guardian''], accessed August 2, 2007.</ref> उनका यौवन अल्जीरिया के एल-बियार में बीता।
 
वहाँ के फ्राँसिसी प्रशासकों ने डेरिडा को 1942 में उनके स्कूल जाने के पहले दिन ही [[Vichy France|विचे]] सरकार की यहूदियो के प्रति भेदभाव की नीति अपनाते हुये निष्कासित कर दिया था। उन्होंने विस्थापित यहूदी अध्यापकों और विद्यार्थियों द्वारा आरम्भ किये स्कूल जाने के बजाये एक वर्ष के लिए गोपनीय तरीके से स्कूल से अनुपस्थित रहना अधिक बेहतर समझा। इस बीच कईं फुटबाल प्रतियोगिताओं में भाग लेते हुए – वे एक व्यवसायिक खिलाड़ी बनने का सपना संजोय थे – वे रूसो, अल्बर्ट कामू, फ्रेदरिक नीत्सचे और आन्द्रे ज़ीड जैसे दार्शनिकों और लेखकों को पढ़ते रहे। उन्होंने दर्शन शास्त्र के विष्य में गम्भीरता से लगभग 1948 और 1949 में सोचना शुरू किया। वे पेरिस के लुई-ल-ग्राँद स्कूल में विद्यार्थी बनें, जहाँ जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा। 1951–52 में अपने स्कूल के अध्ययन वर्ष के अन्त में वे इकोल नोरमेल सुपेरियर की प्राम्भिक परीक्षा में तीसरे प्रयास में ही सफल हो पाये।
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सन्‍ 2002 में वे ''डेरिडा'' नामक एक वृतचित्र में स्वयं की भूमिका में दिखे। सन्‍ 2003 में वे अग्नाशय (pancreatic gland) के कैंसर से ग्रसित पाये गये, जिससे उनके वार्ता कार्यो और यात्रा में कमी आयी। वे पेरिस के एक अस्पताल में 8 अक्तुबर 2004 को मृत्यु को प्राप्त हुये।
 
== कार्य ==
 
'''परिचय'''
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दूसरे शब्दों में, हर तंत्र अथवा समकालिक प्रक्रिया का एक इतिहास होता है, तथा संरचनाओं को उनके उद्‍गम को समझे बिना नहीं समझा जा सकता। साथ ही, गति सुनिश्‍चित करने के लिए आरम्भिकता कोई विशुद्ध एकत्व अथवा सामान्यता नहीं हो सकती, बल्कि इसे पहले से ही ऐसे परिभाषित होना चाहिए कि इससे एक ऐतिहासिक प्रक्रिया का उद्‍गम हो सके। इस आसतित्व-सूचक जटिलता को एक मूलभूत सिद्धांत नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि इसे उद्‍गम का अभाव माना जाना चाहिए, जिसे डेरिडा ने iterability, नक्श या पाठात्मकता (textuality) कहा है। आस्तित्व-सूचक जटिलता का यह विचार, न कि आरम्भिक शुद्धता, उद्‍गमता तथा संरचना के विचारों को असंतुलित करता है तथा डेरिडा के दर्शन का आधार है, जिससे विरचना सहित इस दर्शन की सभी परिभाषायें निकलती हैं।
 
डेरिडा के तर्क में इस आस्तित्व-सूचक जटिलता के सभी नमूनों, किस्मों तथा दूसरे अनेक विषयों में इसके प्रभावों को दर्शाना सम्मिलित था। इस उद्देश्य प्राप्ति में उन्होंने दार्शनिक एवं साहित्यिक मूलग्रंथो की सम्पूर्ण, महीन एवं सचेतन, लेकिन साथ ही बदलावकारी, पाठन की विधि अपनायी, जिसमें उनका झुकाव ऐसे अर्थों को पकड़ना था जो मूलग्रंथ के संरचनात्मक एकत्व अथवा लेखकीय उत्पत्ति के विपरीत प्रकट होते थे।
 
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