"कुमाऊँ": अवतरणों में अंतर

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कुमाऊँ शब्द की व्युत्पति के संबंध में विभिन्न मत प्रचलित रहे हैं। भाषिक दृष्टि से यही उचित जान पड़ता है कि यह शब्द मूलतः [[संस्कृत]] में कूर्म है। [[चम्पावत]] के समीप २१९६ मीटर ऊँचा [[कांतेश्वर]] पर्वत है जिसके संबंध में मान्यता है कि [[भगवान]] [[विष्णु]] अपने द्वितीय [[अवतार]] (कूर्मावतार) में इस पर्वत पर तीन वर्ष तक रहे। तब से वह पर्वत कांतेश्वर के स्थान पर कूर्म-अंचल (कूर्मांचल) नाम से जाना जाने लगा। इस पर्वत की आकृति भी [[कच्छप]] की पीठ जैसी जान पड़ती है। सम्भवतः इसी कारण इस क्षेत्र का नाम कूर्मांचल पड़ा होगा। पहले शायद कूर्म शब्द प्रयोग में आता होगा, क्योंकि कूर्म शब्द का प्रयोग स्थानीय भाषा में बहुतायत से मिलता है। कूर्म के स्थान पर कुमूँ शब्द निष्पन्न होने का एक कारण यह भी हो सकता है कि यहाँ की बोलियों में उकारान्तता अधिक पाई जाती है। कालान्तर में साहित्यिक ग्रन्थों, ताम्रपत्रों में कुमूँ के स्थान पर कुमऊ और उसके बाद कुमाऊँ शब्द स्वीकृत हुआ। संस्कृत ग्रन्थों में भी कूर्मांचल शब्द का प्रयोग मिलता है।
 
==कुमाऊँ काके इतिहासमूल निवासी==
 
===पौराणिक काल===