"लक्ष्मी": अवतरणों में अंतर

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गायत्री के तत्त्वदशर्न एवं साधन क्रम की एक धारा लक्ष्मी है । इसका शिक्षण यह है कि अपने में उस कुशलता की, क्षमता की अभिवृद्धि की जाय, तो कहीं भी रहो, लक्ष्मी के अनुग्रह और अनुदान की कमी नहीं रहेगी । उसके अतिरिक्त गायत्री उपासना की एक धारा 'श्री' साधना है । उसके विधान अपनाने पर चेतना-केन्द्र में प्रसुप्त पड़ी हुई वे क्षमताएँ जागृत होती हैं, जिनके चुम्बकत्व से खिंचता हुआ धन-वैभव उपयुक्त मात्रा में सहज ही एकत्रित होता रहता है । एकत्रित होने पर बुद्धि की देवी सरस्वती उसे संचित नहीं रहने देती, वरन् परमाथर् प्रयोजनों में उसके सदुपयोग की प्रेरणा देती है ।
==लक्ष्मी का स्वरूप [[श्री यन्त्र]] भी==
 
== फलदायक ==
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[[समुद्र मंथन]] से लक्ष्मी जी निकलीं। लक्ष्मी जी ने स्वयं ही भगवान विष्णु को वर लिया।
 
[[चित्र:|thumb|right|200px|]]== इन्हें भी देखें ==
* [[वैभव लक्ष्मी व्रत]]
*[[सम्पदा व्रत]]
* [[लक्ष्मी का वास]]
* [[हिन्दू पंचांग]]
* [[सम्पदा व्रत]]
* [[श्री यन्त्र]]
{{-}}
{{हिन्दू देवी देवता}}