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असम की [[खस जाति]] आज भी सरल धनुषबाण का प्रयोग करती है। [[नागा]] लोग गोली धनुष का प्रयोग करते हैं। 12वीं शताब्दी में यूरोप में कलदार-धनुष (cross bow) का प्रायोग होता था, जो रोमन अस्त्रक्षेपक बैलिस्टा (ballista) का छोटा रूप था। लंबे धनुष की तुलना में इसमें दो अच्छाइयाँ थी, एक तो यह कि इसमें लक्ष्य का वेधन अधिक यथार्थता से होता था और दूसरे इस धनुष के उपयोग में उतनी शक्ति नहीं खर्च होती थी, जितनी अंग्रेजों के धनुषों में। कलदार धनुष लंबाई और भार में बढ़ता गया और इसका स्वरूप जटिल होता गया। अंत में, अग्न्यस्त्रों के व्यवहार में आने पर इसका अंत हो गया। हिंदचीन में आज भी एक प्रकार के कलदार धनुष का प्रचलन है, जिसका उत्पत्तिस्थान मंगोलिया कहा गया है।
 
==बाण ==
बाण का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद संहिता में मिलता है। इषुकृत् और इषुकार शब्दों का प्रयोग सिद्ध करता है कि उन दिनों बाण-निर्माण-कार्य व्यवस्थित व्यवसाय था। ऋग्वेदकालीन लोहार केवल लोहे का काम ही नहीं करता था, बाण भी तैयार करता था। बाण का अग्र भाग [[लोहार]] बनाता था और शेष बाण-निर्मातानिकाय बनाता था।
 
[[ऐतरेय ब्राह्मण]] (ई. पू. 600 वर्ष) में देवताओं के धनुष का रोचक वर्णन मिलता है। देवताओं ने [[सोमयज्ञ]] के उपसद् में एक धनुष तैयार किया। धनुष का अग्रभाग अग्नि, आधार सोम, दंड विष्णु, और पंख वरुण था।
 
बाण का नाम शर कैसे पड़ा, इसका वर्णन [[शतपथ ब्राह्मण]] में मिलता है। जब वृत्रासुर पर इंद्र ने वज्र चलाया तब वज्र के चार खंड हो गए - स्फाय, यूप, रथ और अंतिम भाग शर के रूप में धरती पर गिर पड़ा। टूटने के कारण इनका नाम शर पड़ा। उसमें यह भी लिखा है कि बाण का शीर्ष वैसा ही है जैसे यज्ञ के लिए अग्नि।
 
[[अग्निपुराण]] में बाण के निर्माण का वर्णन है। यह [[लोहा|लोहे]] या बाँस से बनता है। बाँस सोने के रंग का और उत्तम कोटि के रेशोंवाला होना चाहिए। बाण के पुच्छभाग पर पंख होते हैं। उसपर तेल लगा रहना चाहिए, ताकि उपयोग में सुविधा हो। इसकी नोक पर स्वर्ण भी जड़ा होता है।
 
हरिहरचतुरंग के अनुसार बाण तालतृण के दंत, शृंग या शारभ द्रुम (साल या वेणु) के बनते थे। विष्णुधर्मोत्तर में उनके धातु के, शृंग के तथा दारु (बाँस) के बने होने का उल्लेख है। इससे सिद्ध होता है कि ज्यों ज्यों समय बीतता गया पुरानी चीजें छोड़ दी गई। धातु का उपयोग महत्व का है और युद्धकला का अंतिम विकास है।
 
अग्निपुराण में उत्कृष्ट, सामान्य और निकृष्ट तीन प्रकार के बाणों की पहचान दी है। बाण को निर्मुक्त करने के लिए उसके पंखदार सिरे को अँगूठे की सहायता से पकड़ना चाहिए। उत्कृष्ट बाण के दंत की माप 12 मुष्टि (1 मुष्टि संभवत: 1 पल के बराबर थी), सामान्यकी 11 मुष्टि और निकृष्ट की 10 मुष्टि होती थी। [[मनु]] ने भी इन आयुधों का उल्लेख किया है। कालिदास ने तेज, गहरे और दृढ़ दंडों का वर्णन किया है : वेणु, शर, शलाका, दंडसार और नाराच। कुछ बाणों पर लोहे की नोक की, कुछ पर काटने के लिए अस्थि की नोक की और कुछ पर छेदने के लिए लकड़ी की नोक की व्यवस्था रहती थी। जो धनुर्धर आधे अंगुल मोटी धातु की पट्टी को अथवा चमड़े की 24 परतों को बेध देता था, वह अत्यत कुशल माना जाता था।
 
[[श्रेणी:युद्ध]]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/धनुष" से प्राप्त