"वाक्यपदीय": अवतरणों में अंतर

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अणुओं में सभी प्रकार की शक्तियाँ हैं, इसीलिए भेद और संसर्ग (वियोग तथा संयोग) रूप में अणुओं से (संसार के सभी) कार्य होते हैं। ये अणु छाया, आतप, तमस् तथा शब्द के रूप में परिणत होते रहते हैं। ये शक्तियाँ अभिव्यक्त होने के समय में बड़े प्रयत्न से प्रेरित की जाती हैं। और जिस प्रकार (जल के परमाणुओं के क्रमश: इकट्ठे होने से) बादल बनते हैं उसी प्रकार शब्द के परमाणु क्रमश: इकट्ठे होकर सभी कार्य करते हैं। इन परमाणुओं का नाम "शब्द" या "शब्दपरमाणु" है।
 
इस प्रकार शब्द के आगमिक स्वरूप का विवेचन तथा शब्द ही से समस्त जगत् की सृष्टि का निरूपण ब्रह्मकांड में है।
 
==द्वितीय काण्ड==