"इस्पात निर्माण": अवतरणों में अंतर

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==इतिहास में लोहा और इस्‍पात==
लौह अयस्क से [[इस्पात]] बनाने की प्रक्रिया का दूसरा चरण '''इस्पात निर्माण''' (Steelmaking) है। कच्चे लोहे से
यह माना जाता है कि प्रागैतिहासिक युग में [[लोहा]] उल्‍कापिण्‍ड के टुकड़े से प्राप्‍त हुआ था और कई सदियों से यह दुर्लभ धातु बना रहा। बाद में मानव ने इस्पात निर्माण की प्रक्रिया सीखी। उत्‍पाद संभवतः अपेक्षाकृत इतना चिकना और अनुमान न करने योग्‍य था कि हथियार हेतु [[कांस्य]] को तरजीह दिया गया। अंततः जब मानव लोहे को गलाने, फोजिंग करने, कठोर एवं टेमपरिंग करने के कठिन कला में सिद्धहस्त हो गया तो इन उद्देश्यों के लिये लोहे ने अलौह धातुओं का स्‍थान ले लिया।
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इस्पात बनाने के लिये कच्चे लोहे में उपस्थित अतिरिक्त कार्बन तथा [[गंधक]], [[फॉस्फोरस]] आदि अशुद्धियों को निकाला जाता है और [[मैगनीज]], [[निकिल]], [[क्रोमियम]] तथा [[वनाडियम]] (vanadium) आदि तत्व मिलाये जाते हैं ताकि वांछित प्रकार का इस्पात बनाया जा सके।
 
==पुरानी विधियाँ==
प्राचीन काल में मानव द्वारा प्रयोग किये गये लोहा का प्रमाण बेबिलोन, मिस्र, चीन, भारत, यूनान और रोम जैसे प्राचीन सभ्‍यतायें से प्राप्‍त अपूर्ण लेख और इभिलेख में धातु के संदर्भ में प्राप्‍त अपूर्ण लेख और अभिलेख में धातु के संदर्भ में प्रमाण मिला है. मेसीपोटामिया और मिश्र में पाये गये पुरावशेष से यह प्रमाण मिलता है कि लोहा और बाद का इस्‍पात का लगभग 6000 वर्षो तक मानव जाति इसका प्रयोग करता था. प्राचीन काल में लकड़ी से बने हुए काठ कोयला को प्रयोग कर लौहे को गलाया जाता था. बाद में कोयला का ताप का वृहत श्रोत के रूप में पता लगाया गया. तदनन्‍तर यह कोक में परिवर्तित हो गया जो लोह अयस्‍क को गलाने हेतु आदर्श पायाप्राचीन काल में मानव द्वारा प्रयोग किये गये लोहा का प्रमाण बेबिलोन, मिश्र, चाइना, भारत, यूनान और रोम जैसे प्राचीन सभ्‍यतायें से प्राप्‍त अपूर्ण लेख और इभिलेख में धातु के संदर्भ में प्राप्‍त अपूर्ण लेख और अभिलेख में धातु के संदर्भ में प्रमाण मिला है. मेसीपोटामिया और मिश्र में पाये गये पुरावशेष से यह प्रमाण मिलता है कि लोहा और बाद का इस्‍पात का लगभग 6000 वर्षो तक मानव जाति इसका प्रयोग करता था. प्राचीन काल में लकड़ी से बने हुए काठ कोयला को प्रयोग कर लौहे को गलाया जाता था. बाद में कोयला का ताप का वृहत श्रोत के रूप में पता लगाया गया. तदनन्‍तर यह कोक में परिवर्तित हो गया जो लोह अयस्‍क को गलाने हेतु आदर्श पाया गया
 
==आधुनिक प्रक्रियाएँ==
अमेरिका में 1646 ईसवी में सफलतापूर्वक स्‍थापित आयरन वर्क्‍स “दी साउगस वर्क्‍स “ के पश्‍चात लगभग 200 या इससे अधिक वर्षो के लिए लोहा अपना प्रबल स्‍थान बनाये रखा. नये रेलगाड़ियों के आविष्‍कृत होने से लोहे की पटरियाँ बनीं। लड़ाकू जहाजों के साइड को लोहे के कवच से सुरक्षित रखने के लिए लोहे का प्रयोग होता था. लगभग 19 वीं शताब्‍दी के मध्‍य में 1856 में [[बेसेमर प्रक्रिया]] के आविष्‍कार से इस्‍पात के युग का आरंभ हुआ जो इस्‍पात को पर्याप्‍त मात्रा एवं उचित लागत में बनाने की अनुमति दे दी।
 
===प्राथमिक इस्पात निर्माण===
==प्राचीन भारत में लोहे का प्रयोग==
प्राचीन भारत में लोहा इस्‍पात का पूरा उल्‍लेख है। कुछ प्राचीन स्‍मारक जैसे नई दिल्‍ली में प्रसिद्ध लोह स्‍तम्‍भ या कोणार्क में सूर्य मंदिर में प्रयोग किया गया ठोस बीम में पर्याप्‍त साक्ष्‍य मिलता है जो प्राचीन भारतीय धातु विज्ञानी का प्रौद्योगिकीय उत्‍कर्ष दिखाता है।
 
===द्वितियक इस्पात निर्माण===
भारत में लोहे का प्रयोग प्रचीन युग की ओर ले जाता है. वेदिक साहित्यिक स्रोत जैसा कि ऋगवेद, अथर्ववेद, पुराण, महाकाब्‍य में शान्ति और युद्ध में लोहे के गारे में उल्‍लेख किया गया है. एक अध्‍ययन के अनुसार लोहा भारत में आदिकालीन लघु सुविधाओं में 3000 वर्षों से अधिक समय से भारत में उत्‍पन्‍न होता है।
 
===ह्ल्सर्न इस्पात निर्माण प्रक्रिया==
===भारतीय इतिहास में लौह एवं इस्‍पात के क्षेत्र में कुछ मील का पत्‍थर===
HIsarna steelmaking process
 
* '''326 ईसा पूर्व''' - पोरस ने भारतीय लोहे का 30 एल बी एस [[सिकन्दर]] को प्रदान किया.
 
*'''300 ईसा पूर्व''' - [[अर्थशास्‍त्र]] में [[कौटिल्‍य]] (चाणक्‍य) ने खनिज, जिसमें लोह अयस्‍क सम्मिलित है, की जानकारी दी और धातुओं को निकालने के कौशल का उल्‍लेख किया है।
 
*'''320 ईसवी''' - [[इंदौर]] के निकट मालवा के प्राचीन राजधानी [[धार]] में एक 16 मीटर लौह स्‍तम्‍भ स्‍थापित किया गया था.
 
*'''380 ईसवी''' - दिल्‍ली के निकट चंद्रगुप्‍त की स्‍मृति में लोह स्‍तम्‍भ स्‍थापित किया गया. इस पिटवा लोहा का ठोस स्‍तम्‍भ लगभग 8 मीटर लम्‍बा और व्यास 0.32 से 0.46 मीटर है।
 
*'''13 वीं सदी''' - [[कोणार्क]] सूर्य मंदिर के निर्माण में ठोस लोहा बीमों का इस्‍तेमाल हुआ है।
 
*'''16वीं सदी''' - मध्‍य पूर्व और यूरोप में इंडियन स्‍टील जो वुट्ज आफ वाटरी अपिअरन्‍स से जाना जाता है का इस्‍तेमाल हुआ है।
 
*'''17 वीं सदी''' - तोपों, अग्निशस्‍त्र और तलवार एवं कृषीय उपकरण का विनिर्माण. तेन्‍डुलकमा एम.पी.के साउगोर में लोहा से 1830 में बीज के दपर ससपेन्‍शन ब्रिज बनाया गया. मद्रास प्रेसिडेन्‍सी के पोरटो नोवा में जे .एम हीथ ने आयरन स्‍मेल्‍टर बनाया.
 
*'''1870''' - [[कुल्‍टी]] में [[बंगाल आयरन वर्क्‍स]] स्‍थापित किया गया.
 
*'''1907''' - [[टाटा आयरन एण्‍ड स्‍टील कम्‍पनी]] की स्थापना
 
*'''1953''' - [[राउरकेला]] में स्‍टील प्‍लांट का ढॉंचा बनाने के लिए भारत सरकार ग्रुप डेमग,फेडरल रिपब्लिक आफ जर्मनी के साथ समझौता किया।
 
*'''1954''' - राउरकेला, दुर्गापुर और भिलाई में हिंदुस्‍तान स्‍टील लिमिटेड ने तीन एकीकृत स्‍टील प्‍लांन्‍ट का निर्माण और प्रबंध किया ।
 
==इन्हें भी देखें==
*[[इस्पात]]
*[[लोहस धातुकर्म]] (Ferrous metallurgy)
*[[लौह धातुकर्म का इतिहास]]
*[[भारतीय धातुकर्म का इतिहास]]
 
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.msf.gov.in/web-hindi/ धातु एवं इस्पात निर्माणी, ईशापुर]
 
[[cs:Výroba oceli]]