"नेपाली भाषाएँ एवं साहित्य": अवतरणों में अंतर

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== नेपाली ==
वास्तव में किन्नर, यक्ष और गंधर्वो के बाद हिमालय पर कश्यप वंश के लोगों का ही अधिकार हुआ था। कश (कष्ट देना) से ही खश या खस शब्द की व्युत्पत्ति है। इस वर्ग के लोग बहुत हिंसक होने के ही कारण कश्यप कहलाए थे। कालांतर में यह भूमिभाग ही खश प्रदेश कहलाने लगा था और यहाँ आकर बसने पर देववंशी आर्य भी खस ही कहलाने लगे। अत: नेपाल में गोरखाउक्त प्रदेश में बसने के कारण गोरखा कहे जानेवाले क्षत्रिय और ब्राह्मण कश्यप जाति के वंशज नहीं मान जाने चाहिए। इनमें जिनका गोत्र कश्यप हो वे चाहे हों, गोरखासिंजा प्रदेश के क्षत्रियों में बिस्ट, वैस, बस्नेत, शाह आदि तथा ब्राह्मणों में उप्रेती, पांडेय, भूसाल, रिजाल, आचार्य आदि नि:संदेह शुद्ध देववंशी ॠग्वेदीय आर्यों के वंशज हैं। और खसकुरा, गोरखाली, "परवतिया" या नेपाली इन्हीं देववंशियों की मूलभाषा का वर्तमान रूप है। यह हिंद आर्यभाषा की ही एक शाखा है। हिंद आर्यभाषा की पहली शाखा में सिंधी, बिहारी, असमी, मराठी, ओड़िया और बंगला भाषाओं की गणना है। दूसरी शाखा में पूर्वी हिंदी भाषाओं की, तीसरी शाखा में पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती, पश्चिमी हिंदी, पहाड़ी और नेपाली की गणना है। नि:संदेह आधुनिक नेपाली में पंजाबी, गुजराती, अवधी, राजस्थानी (ब्रजबोली) की काफी झलक मिलती है। "है" के लिए "छ" "छु" "छन्" क्रिया का प्रयोग गुजराती की समानता दर्शाता है। खड़े रहने को नेपाली में भी "उभी रहनुउभिरहनु" कहते हैं। आपका, आपकी के लिए गुजराती में "पोतानी" शब्द है। नेपाली का "तपाई" शब्द पोतानी गुजराती का ही अपभ्रंश है।
 
"तल" नीचे, माथि (ऊपर और लेख का शीर्षक भी) राजस्थानी की समानता दिखलाता है। छाला (चमड़ा), बहुवचन के लिए "हरू" शब्द का प्रयोग (नारीहरू नारियाँ; बालकहरू लड़के) अवधी के "हरे" (रामअवध हरे आवत रहे हैं) शब्द नेपाली में बहुत हैं जा भोजपुरी की झलक देते हैं जैसे "विरामी" (बीमारी), "विर्सनु" (बिसरना), "बेग्ला" (विलग), बेलुकी (विकालीउ शाम), "निम्ति" (निमित्त) इत्यादि। पहाड़ी भाषाओं के ही समान नेपाली में भी अकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ भी ले (ने) शब्द का प्रयोग होता है। "ले" का अर्थ से भी होता है-