"मदनलाल पाहवा": अवतरणों में अंतर

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==भारत में शरणार्थी जीवन==
वहाँ नौकरी की तलाश में भटकते हुए मदनलाल को उनके एक मित्र ने रुइया कालेज बम्बई के हिन्दी अध्यापक डॉ० जे०सी०जैन से मिलवाया। दॉ० जैन ने पच्चीस प्रतिशत कमीशन पर उनकी अपनी लिखी हुई पुस्तकें बेचने का काम दे दिया। बाद में उन्होंने एक पटाखे की फैक्ट्री में नौकरी कर ली जहाँ काम करते हुए उन्होंने हथगोला बनाने की विधि सीख ली। इसी दौरान मशीन की गरारी के बीच हाथ आ जाने से उनके हाथ की उँगलियाँ कट गयीं किन्तु उन्होंने उस दर्द को चुपचाप बर्दाश्त कर लिया क्योंकि डॉक्टर के पास इलाज कराने के लिये बाहर जाने पर पकडे जाने का डर था।.
 
==हिन्दू महासभा के सम्पर्क में==
इसके बाद मदनलाल पाहवा दादा महाराज के माध्यम से हिन्दू महासभा के विष्णु करकरे की संगति में आये। करकरे सेठ ने मदनलाल को फलों की दूकान खुलवा दी। करकरे ने ही उन्हें पूना ले जाकर नारायण आप्टे और नाथूराम गोडसे से मिलवाया। ५ जनवरी १९४८ को अहमदनगर की एक सभा में कांग्रेसी नेता रावसाहब पटवर्धन के हाथों से माइक छीनने के आरोप में उनके और करकरे के नाम पुलिस इन्स्पेक्टर रज्जाक की रिपोर्ट पर १२ जनवरी १९४८ को गिरफ्तारी के वारण्ट जारी हो गये। लेकिन तब तक वे दोनों अहमदनगर छोडकर दिल्ली जा चुके थे।
 
[[श्रेणी:महात्मा गांधी की हत्या]]