"मदर इण्डिया": अवतरणों में अंतर

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खान को फ़िल्म और उसके शीर्षक का ख्याल १९५२ में आया। उस वर्ष अक्टूबर में उन्होंने आयात अधिकारीयों के पास फ़िल्म के निर्माण का प्रस्ताव रखा।<ref>चैटर्जी (2002), p.10</ref> १९५५ में भारतीय मंत्रालय के सुचना व प्रौद्योकीकरण विभाग को आगामी फ़िल्म के शीर्षक के बारे में पता काला और उन्होंने महबूब खान को फ़िल्म की कथा भेजने को कहा ताकि उसकी समीक्षा की जा सके। उन्हें इस बात का डर था की कहीं फ़िल्म भारत के राष्ट्रिय हित को ठेस न पहुंचाए।<ref name="Chatterjee20">चैटर्जी (2002), p.20</ref>
 
{{Quote|"हमारी फ़िल्म और मायो की ''मदर इण्डिया'' को लेकर काफ़ी असमंजस की स्थिति पैदा हो गई थी। दोनों ही वस्तुएँ बेहद अलग और एक दूसरे के विपरीत है। हमने जानबूझ कर फ़िल्म को ''मदर इण्डिया'' कहा है ताकि पुस्तक को हम चुनौती डे सके और लोगों की दिमाग में से मायो की बकवास को बाहर निकल सके।"<ref name="Sinha248">सिन्हा (2006), p.248</ref>}}
 
इस फ़िल्म की कहानी जानबूझ कर इस तरह लिखी गई जिससे भारतीय समाज में महिलाओं की स्तिथि, पुरषों के बढ़ते आकर्षण का विरोध और अपने स्वाभिमान पर दृढ़ निश्चय को दर्शाया गया। खान को प्रेरणा अमरीकी लेखक पर्ल एस. बक और उनकी ''द गुड अर्थ'' (१९३१) व ''द मदर'' (१९३४) पुस्तकों से मिली जिन्हें सिडनी फ्रेंकलिन ने १९३७ और १९४० में फ़िल्मों में रुपंतारित किया था।<ref name="Sinha248"/> खान ने इन सब चीज़ों को अपनी १९४० में बनी फ़िल्म ''औरत'' में प्रयोग किया था जो ''मदर इण्डिया'' की असली प्रेरणा थी।<ref>{{cite book|url=http://books.google.co.in/books?id=8y8vN9A14nkC |page=55 |title=इन्सैक्लोपिदिया ऑफ हिन्दी सिनेमा |author=गुलज़ार, गोविन्द निहलानी, सिबल चैटर्जी |publisher=पॉपुलर प्रकाशन |year=2003 |isbn=978-81-7991-066-5 |accessdate=23 फ़रवरी 2011}}</ref> खान ने संवेदनशील तरीके से कहानी पर कार्य किया और उन्हें डायलॉग लिखने में वजाहत मिर्ज़ा व एस. अली रज़ा ने मदद की। यह फ़िल्म आगे चलकर कई फ़िल्मों, जैसे [[यश चोपरा]] की ''[[दीवार]]'' फ़िल्म के लिए प्रेरणास्रोत रही जिसमे [[अमिताभ बच्चन]] ने उन्दा अभिनय किया था और बाद में जिसे [[तेलगु]] में ''बंगारू तल्ली'' (१९७१) और [[तमिल]] में ''पुनिया बूमी'' (१९७८) में बनाया गया।<ref name="Pauwels2007">{{cite book|last=पौवेल्स |first=हेइदी रिका मारिया |title=इंडियन लिटरेचर एंड पॉपुलर सिनेमा: रिकास्टिंग क्लासिक्स |url=http://books.google.com/books?id=LiXU4ihgMpgC&pg=PA178 |accessdate=23 फ़रवरी 2011 |year=2007 |publisher=रौत्लेज |isbn=978-0-415-44741-6 |page=178}}</ref>
 
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