"मदनलाल पाहवा": अवतरणों में अंतर

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==भारत में शरणार्थी जीवन==
वहाँ नौकरी की तलाश में भटकते हुए मदनलाल को उनके एक मित्र ने रुइया कालेज बम्बई के हिन्दी अध्यापक डॉ० जे०सी०जैन से मिलवाया। दॉ०डॉ० जैन ने पच्चीस प्रतिशत कमीशन पर उनकी अपनी लिखी हुई पुस्तकें बेचने का काम दे दिया। बाद में उन्होंनेमदनलाल ने एक पटाखे की फैक्ट्री में नौकरी कर ली जहाँ काम करते हुए उन्होंने हथगोला बनाने की विधि सीख ली। इसी दौरान मशीन की गरारी के बीच हाथ आ जाने से उनके हाथ की उँगलियाँ कट गयीं किन्तु उन्होंने उस दर्द को चुपचाप बर्दाश्त कर लिया क्योंकि डॉक्टर के पास इलाज कराने के लिये बाहर जाने पर पकडे जाने का डर था।.
 
==हिन्दू महासभा के सम्पर्क में==