"मदनलाल पाहवा": अवतरणों में अंतर

पंक्ति 13:
इसके बाद मदनलाल पाहवा दादा महाराज के माध्यम से हिन्दू महासभा के विष्णु करकरे की संगति में आये। करकरे सेठ ने मदनलाल को फलों की दूकान खुलवा दी। करकरे ने ही उन्हें पूना ले जाकर नारायण आप्टे और नाथूराम गोडसे से मिलवाया। ५ जनवरी १९४८ को अहमदनगर की एक सभा में कांग्रेसी नेता रावसाहब पटवर्धन के हाथों से माइक छीनने के आरोप में उनके और करकरे के नाम पुलिस इन्स्पेक्टर रज्जाक की रिपोर्ट पर १२ जनवरी १९४८ को गिरफ्तारी के वारण्ट जारी हो गये। लेकिन तब तक वे दोनों अहमदनगर छोडकर दिल्ली जा चुके थे।
==बिरला हाउस दिल्ली की घटना==
२० जनवरी १९४८ को मदनलाल पाहवा विष्णु रामकृष्ण करकरे, शंकर किस्तैय्याकिश्तैय्या, दिगम्बर रामचन्द्र बडगे, गोपाल गोडसे, नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे के साथ एक लारी में बैठकर, जिसे सुरजीत सिंह नाम का एक सरदार चला रहा था, बिरला हाउस नई दिल्ली पहुँचे। बिरला हाउस के गेटकीपर छोटूराम को रिश्बत देकर ये सभी लोग प्रार्थना सभा में घुस गये। मदनलाल ने छोटूराम से कहा कि वह उन्हें सभा-स्थल के पीछे जाने दे जहाँ से गान्धी की प्रार्थना सभा में उपस्थित जन समुदाय की एक फोटो ली जा सके। छोटूराम को जब मदनलाल पर शक हुआ तो उसने वहाँ से चले जाने को कहा। इस पर मदनलाल बाहरवापस आयेलौटे और बाउण्डरी वालचहारदीवारी के ऊपर हथगोलासे रखकरगान्धीजी उसमेंकी आगसभा लगाकरमें फुर्तीहथगोला सेफेंककर वहाँ से रफूचक्करभागे होपरन्तु भीड के हत्थे चढ गये। उनके अन्य साथी प्रार्थना सभा में भगदड कीमची अफरा-तफरी मेंका बाकीलाभ सबउठाकर भीबिरला वहाँहाउस से साफ बच निकले।
 
==मदनलाल पर अभियोग==
अदालत में जब गान्धी-वध का अभियोग चला तो मदनलाल ने उसमें स्वीकार किया कि जो भी लोग इस षड्यन्त्र में शामिल थे पूर्व योजनानुसार उसे केवल बम फोडकर सभा में गडबडी फैलाने का काम करना था, शेष कार्य अन्य लोगों के जिम्मे था। जब उसे छोटूराम ने जाने से रोका तो उसने जैसे भी उससे बन पाया अपना काम कर दिया। उस दिन की योजना भले ही असफल हो गयी किन्तु इस बात की जानकारी तो सरकार को हो ही गयी थी कि गान्धी की हत्या कभी भी कोई कर सकता है फिर उनकी सुरक्षा की चिन्ता किन्हें करनी चाहिये थी। क्या यह दायित्व पं० जवाहर लाल नेहरू जो देश के प्रधान मन्त्री थे अथवा सरदार पटेल, जो गृह मन्त्री थे उनका नहीं था? आखिर २० जनवरी १९४८ की पाहवा द्वारा गान्धीजी की प्रार्थना-सभा में बम-विस्फोट के ठीक १० दिन बाद उसी प्रार्थना सभा में उसी समूह के एक सदस्य नाथूराम गोडसे ने गान्धी के सीने में ३ गोलियाँ उतार कर उन्हें सदा सदा के लिये समाप्त कर दिया।