"मदनलाल पाहवा": अवतरणों में अंतर

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अदालत में जब गान्धी-वध का अभियोग चला तो मदनलाल ने उसमें स्वीकार किया कि जो भी लोग इस षड्यन्त्र में शामिल थे पूर्व योजनानुसार उसे केवल बम फोडकर सभा में गडबडी फैलाने का काम करना था, शेष कार्य अन्य लोगों के जिम्मे था। जब उसे छोटूराम ने जाने से रोका तो उसने जैसे भी उससे बन पाया अपना काम कर दिया। उस दिन की योजना भले ही असफल हो गयी किन्तु इस बात की जानकारी तो सरकार को हो ही गयी थी कि गान्धी की हत्या कभी भी कोई कर सकता है फिर उनकी सुरक्षा की चिन्ता किन्हें करनी चाहिये थी।
===नेहरू व पटेल भी दोषी===
क्या यह दायित्व पं०[[ जवाहर लाल नेहरू]] जो देश के प्रधान मन्त्री थे, अथवा [[सरदार पटेल]], जो गृह मन्त्री थे उनका नहीं था? आखिर २० जनवरी १९४८ की पाहवा द्वारा गान्धीजी की प्रार्थना-सभा में बम-विस्फोट के ठीक १० दिन बाद उसी प्रार्थना सभा में उसी समूह के एक सदस्य नाथूराम गोडसे ने गान्धी के सीने में ३ गोलियाँ उतार कर उन्हें सदा सदा के लिये समाप्त कर दिया। '''हत्यारिन राजनीति''' शीर्षक से लिखित एक कविता में यह सवाल ("साजिश का पहले-पहल शिकार सुभाष हुए, जिनको विमान-दुर्घटना करवा मरवाया; फिर मत-विभेद के कारण गान्धी का शरीर, गोलियाँ दागकर किसने छलनी करवाया?") बहुत पहले [[इन्दिरा गान्धी]] की मृत्यु के पश्चात सन १९८४ में ही उठाया था जो आज तक अनुत्तरित है।
 
===पाहवा की शिनाख्त===
अदालत में पाहवा की शिनाख्त सुलोचना देवी नाम की एक महिला ने की थी जो उस दिन बिरला हाउस परिसर में अपने ३ साल के बच्चे को खोजने आयी थी। उसने ही मदनलाल को वहाँ बम में पलीता लगा कर भागते हुए देखा था। केवल एक महिला की गवाही पर पाहवा को आजीवन कारावास का दण्ड दिया गया।