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==विवरण==
ईरानी भाषा [[भारतहिन्द-यूरोपीय भाषापरिवारभाषा-परिवार]] की शाखा हिंद[[हिन्द-ईरानी भाषा परिवार]] की उपशाखा, ईरानी, भारतीयभाषा परिवार [[हिन्द-आर्य भाषाएँ|हिन्द-आर्य उपशाखा]] की भाँति ही महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल में यह प्राचीन फारसीफ़ारसी (पारसी) के रूप में एक राजकीय भाषा थी और [[अवेस्तीअवस्ताई भाषा|अवस्ताई]] के रूप में धार्मिक भाषा।भाषा थी। मध्य ईरानी के काल में दो प्रभूत जनभाषाएँ विकसित हुईं, पूर्व प्रदेश में सोग्दी[[सोग़दा|सोग़दी]] और पश्चिमी प्रदेश में [[पहलवी]]। इनके अतिरिक्त फारसीफ़ारसी बहुत समय तक [[एशिया]] के बड़े भूभाग में [[संस्कृति]] की भाषा रही।
 
प्राचीन फारसी [[ईरान]] के दक्षिण-पश्चिमी कोने की भाषा थी। उसका परिचय हमें [[कीलाक्षर|कीलाक्षरों]] में खुदे हुए [[हख़ामनी साम्राज्य|हख़्मानी बादशाहों]] के अभिलेखों से मिलता है। इनकी लिपि संभवत: [[अक्कादी भाषा|अक्कदी लिपि]] से संबद्ध है। सबसे पुराना लेख अरिय-रग्न (610-580 ई.पू.) का बताया जाता है, किंतु सबसे महत्व के लेख बादशाह दारा (520-486 ई.पू.) के हें जो उसके साम्राज्य में सर्वत्र पाए जाते हैं। इनमें भी बिहिस्तून का अभिलेख सर्वप्रसिद्ध है। प्राचीन फारसी के अतिरक्त ये लेख अन्य दो भाषाओं (एलमी और बेबीलोनी) में भी पाए जाते हैं।
 
अवेस्तीअवस्ताई धर्मग्रंथ की भाषा है और [[वैदिक संस्कृत]] के बहुत क़रीब है। [[अवेस्ता]] अहुरमज़्द के उपासक [[पारसी धर्म|पारसी लोगों]] का धर्मग्रंथ है। इसमें भिन्न-भिन्न कालों में रचित उपासना और प्रार्थना के सूक्त पाए जाते हैं। [[ऋग्वेद]] की भाँति अवेस्ता भी श्रुतिपरंपरा पर ही निर्भर थी और यह पहलवी वर्णमाला में [[सासानी साम्राज्य|सासानी बादशाहों]] के समय में लेखबद्ध की गई। विद्वान्‌ इसके प्राचीन भागों का काल ई.पू. आठवी सदी निर्धारित करते हैं। यह ईरान के पूर्वी भाग की भाषा थी। प्राचीन ईरानी का अवेस्ती और प्राचीन फारसी को छोड़कर हमें और कोई लेख नहीं मिलता।
 
मध्य ईरानी के दो समुदाय हैं:
मध्य ईरानी के दो समुदाय हैं : एक पश्चिमी और दूसरा पूर्वी। पश्चिमी मध्य ईरानी को पहलवी कहते हैं। इस शब्द का संबंध पहलवीक्‌ जाति से समझा जाता है। यह सासानी साम्राज्य (226 ई.पू.-652 ई.) की राजभाषा थी और इसमें लिखित बहुत से धार्मिक तथा अन्य ग्रंथ मिलते हैं। इनकी लिपि अरमीनी से प्रभूत तथा प्रभावित मालूम होती है।
*'''पश्चिमी मध्य ईरानी''' को पहलवी कहते हैं। इस शब्द का संबंध पहलवीक्‌ जाति से समझा जाता है। यह सासानी साम्राज्य (226 ई.पू.-652 ई.) की राजभाषा थी और इसमें लिखित बहुत से धार्मिक तथा अन्य ग्रंथ मिलते हैं। इनकी लिपि अरमीनी से प्रभूत तथा प्रभावित मालूम होती है। मध्य ईरानी की कई भाषाओं के अभिलेख भाषाओं के अभिलेख और पुस्तकें अभी 50-60 वर्ष पूर्व तुर्फ़ान (पूर्वी तुर्किस्तान) में प्राप्त हुई हैं। इनमें [[पार्थिया|पारथी भाषा]] उल्लेखनीय है। मध्यकालीन फारसी भी इसी समुदाय की है। इसमें सासानी बादशाहों के अभिलेख मिलते हैं। यही भाषा पज़ंद नाम से अवेस्ती धर्म की पुस्तकों के लिए भी प्रयोग में आई है।
*'''पूर्वी मध्य ईरानी के पूर्वी समुदाय''' में पूर्वी तुर्किस्तान में प्राप्त हुए साहित्य की भाषाएँ हैं। इनमें बुखारा[[बुख़ारा]] और [[समरकंद]] के क्षेत्र की प्राचीन भाषा सोग्दी[[सोग़दा|सोग़दी]] है जो एशिया के मध्यवर्ती विस्तृत क्षेत्र की भाषा रही होगी। यह [[मंगोलिया]] से लेकर [[तिब्बत]] के सीमाप्रांत तक फैली हुई थी। इसमें [[बौद्ध धर्म|बौद्ध धर्मग्रंथ]] (बहुधा [[चीनी भाषा]] से अनूदित), ईसाई धर्मग्रंथ (सीरीयाई भाषा से अनूदित तथा मौलिक) और मनीची ग्रंथ मिलते हैं। सबसे पुराने ग्रंथों का समय ईसवी चौथी शती होगा। सोग्दी के अतिरिक्त इस समुदाय की दूसरी महत्व की भाषा खोतानी है। इसे 'शक' भी कहते हैं। इसमें बहुत से धर्मग्रंथ आठवीं से 10वीं शती के लिखे हुए प्राप्त हुए हैं। इनमें बहुत से बौद्धधर्म संबंधी हैं। लिपि सबकी [[ब्राह्मी लिपि|ब्राह्मी]] है और शब्दावली में [[प्राकृत]] के बहुत से शब्द मिलते हैं।
 
आधुनिक ईरानी की सबसे महत्वपूर्ण भाषा [[फ़ारसी]] है। यह [[अरबी-फ़ारसी लिपि]] में लिखी जाती है। यह [[अफ़्ग़ानिस्तान]] से लेकर पश्चिम के काफी बड़े भूप्रदेश में संस्कृति की प्रतिनिधि भाषा है। इसमें आठवीं शती ई. से लेकर प्रभूत साहित्य का सृजन हुआ है। गठन की दृष्टि से [[पामीरी भाषाएँ]], कुर्दी, बलोची और [[पश्तो]] भी ईरानी उपशाखा के अंतर्गत हैं। विस्तार की दृष्टि से हिंद-ईरानी शाखा की तीन भाषाओं ने महत्व प्राप्त किया - [[संस्कृत]], [[पालि]] और फ़ारसी, और ये तीनों सभ्यता और संस्कृति की प्रचारक रहीं।<ref name="ref65herax">[http://books.google.com/books?id=rhejSwAACAAJ Les langues du monde, Volume 2], Antoine Meillet, Société de linguistique de Paris, Champion, 1952</ref>
मध्य ईरानी की कई भाषाओं के अभिलेख भाषाओं के अभिलेख और पुस्तकें अभी 50-60 वर्ष पूर्व तुर्फ़ान (पूर्वी तुर्किस्तान) में प्राप्त हुई हैं। इनमें पारथी भाषा उल्लेखनीय है। मध्यकालीन फारसी भी इसी समुदाय की है। इसमें सासानी बादशाहों के अभिलेख मिलते हैं। यही भाषा पज़ंद नाम से अवेस्ती धर्म की पुस्तकों के लिए भी प्रयोग में आई है।
 
मध्य ईरानी के पूर्वी समुदाय में पूर्वी तुर्किस्तान में प्राप्त हुए साहित्य की भाषाएँ हैं। इनमें बुखारा और समरकंद के क्षेत्र की प्राचीन भाषा सोग्दी है जो एशिया के मध्यवर्ती विस्तृत क्षेत्र की भाषा रही होगी। यह मंगोलिया से लेकर तिब्बत के सीमाप्रांत तक फैली हुई थी। इसमें बौद्ध धर्मग्रंथ (बहुधा चीनी भाषा से अनूदित), ईसाई धर्मग्रंथ (सीरीयाई भाषा से अनूदित तथा मौलिक) और मनीची ग्रंथ मिलते हैं। सबसे पुराने ग्रंथों का समय ईसवी चौथी शती होगा।
 
सोग्दी के अतिरिक्त इस समुदाय की दूसरी महत्व की भाषा खोतानी है। इसे सक भी कहते हैं। इसमें बहुत से धर्मग्रंथ आठवीं से 10वीं शती के लिखे हुए प्राप्त हुए हैं। इनमें बहुत से बौद्धधर्म संबंधी हैं। लिपि सबकी ब्राह्मी है और शब्दावली में प्राकृत के बहुत से शब्द मिलते हैं।
 
आधुनिक ईरानी की सबसे महत्वपूर्ण भाषा फारसी है। यह अरबी लिपि में लिखी जाती है। यह अफ़गानिस्तान से लेकर पश्चिम के काफी बड़े भूप्रदेश में संस्कृति की प्रतिनिधि भाषा है। इसमें आठवीं शती ई. से लेकर प्रभूत साहित्य का सृजन हुआ है।
 
गठन की दृष्टि से पामीरी, कुर्दी, बलोची और पश्तो भी ईरानी उपशाखा के अंतर्गत हैं।
 
विस्तार की दृष्टि से हिंद-ईरानी शाखा की तीन भाषाओं ने महत्व प्राप्त किया - [[संस्कृत]], [[पालि]] और [[फारसी]], और ये तीनों सभ्यता और संस्कृति की प्रचारक रहीं। ईरानी उपशाखा में फारसी सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाषा है।<ref name="ref65herax">[http://books.google.com/books?id=rhejSwAACAAJ Les langues du monde, Volume 2], Antoine Meillet, Société de linguistique de Paris, Champion, 1952</ref>
 
==इन्हें भी देखें==