"केदारनाथ नगर": अवतरणों में अंतर

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मुख्य मंदिर
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== वास्तु शिल्प ==
 
केदारेश्वर (केदारनाथ) ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मन्दिर का निर्माण पाण्डवों ने कराया था, जो पर्वत की 11750 फुट की ऊँचाई पर अवस्थित है। पौराणिक प्रमाण के अनुसार ‘केदार’ महिष अर्थात भैंसे का पिछला अंग (भाग) है। केदारनाथ मन्दिर की ऊँचाई 80 फुट है, जो एक विशाल चौकोर चबूतरे पर खड़ा है। इस मन्दिर के निर्माण में भूरे रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि, यह भव्य मन्दिर प्राचीन काल में यान्त्रिक साधनों के अभाव में ऐसे दुर्गम स्थल पर उन विशाल पत्थरों को लाकर कैसे स्थापित किया गया होगा? यह भव्य मन्दिर पाण्डवों की शिव भक्ति, उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति तथा उनके बाहुबल का जीता जागता प्रमाण है।
 
 
 
== केदारनाथ मन्दिर ==
इस मन्दिर में उत्तम प्रकार की कारीगरी की गई है। मन्दिर के ऊपर स्तम्भों में सहारे लकड़ी की छतरी निर्मित है, जिसके ऊपर ताँबा मढ़ा गया है। मन्दिर का शिखर (कलश) भी ताँबे का ही है, किन्तु उसके ऊपर सोने की पॉलिश की गयी है। मन्दिर के गर्भ गृह में केदारनाथ का स्वयंमभू ज्योतिर्लिंग है, जो अनगढ़ पत्थर का है। यह लिंगमूर्ति चार हाथ लम्बी तथा डेढ़ हाथ मोटी है, जिसका स्वरूप भैंसे की पीठ के समान दिखाई पड़ता है। इसके आस-पास सँकरी परिक्रमा बनी हुई है, जिसमें श्रद्धालु भक्तगण प्रदक्षिणा करते हैं। इस ज्योतिर्लिंग के सामने जल, फूल, बिल्वपत्र आदि को चढ़ाया जाता है और इसके दूसरे भाग में यात्रीगण घी पोतते हैं। भक्त लोग इस लिंगमूर्ति को अपनी बाँहों में भरकर भगवान से मिलते भी हैं।
 
=== अन्य मंदिर और कुण्ड ===
 
मन्दिर के जगमोहन में द्रौपदी सहित पाँच पाण्डवों की विशाल मूर्तियाँ हैं। केदारनाथ-मन्दिर के प्रवेश द्वार पर नन्दी की विशाल प्रतिमा स्थापित है और वहाँ से दक्षिण की ओर एक पहाड़ी पर श्री भैरव जी का एक सुन्दर मन्दिर है। केदारनाथ-मन्दिर के द्वार पर दोनों ओर द्वारपालों की मूर्तियाँ हैं। केदारनाथ की श्रृंगार मूर्ति पाँच मुखवाली है और इसे हमेशा वस्त्र तथा आभूषणों से सजाया जाता है। मन्दिर में उक्त मूर्तियों के अतिरिक्त पन्द्रह अन्य देवमूर्तियाँ भी स्थापित हैं। मन्दिर से पीछे लगभग तीन हाथ लम्बा एक कुण्ड है, जिसे 'अमृतकुण्ड' कहा जाता है। इस अमृतकुण्ड में दो शिवलिंग हैं। इनके पूर्व और उत्तर भाग में 'हंसकुण्ड' और 'रेतसकुण्ड' स्थित हैं। यहाँ की परम्परा है कि रेतसकुण्ड में पैर (जंघा) टेककर बायें हाथ से तीन आचमन किये जाते हैं। यहीं पर ईशानेश्वर-महादेव की प्रतिमा विराजमान है।
 
केदारनाथजी के मन्दिर के सामने एक छोटे मन्दिर में 'उदक कुण्ड' है। इस कुण्ड में भी रेतसकुण्ड के समान ही आचमन लेने की प्रथा प्रचलित है। इस मन्दिर के पीछे मीठे जल का एक कुण्ड स्थित है, जिसका पानी भक्तगण पीते हैं। श्रावण के महीने में केदारेश्वर की पूजा गंगाजल, बिल्वपत्र तथा ब्रह्मकमल के फूलों से की जाती है। केदारघाटी के इस क्षेत्र में पंचकेदार (पाँच केदारनाथ) प्रसिद्ध हैं, जिनके स्थान मन्दिर और शिवलिंगों का अपना-अपना विशेष महत्त्व है।
 
 
==संदर्भ==