"दन्तचिकित्सा": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:GI at Guantanamo visits the dentist.JPG|right|thumb|300px|दंतचिकित्सक]]
'''दंतचिकित्सा''' (Dentistry) स्वास्थ्यसेवा की वह शाखा है, जिसका संबंध [[मुख]] के भीतरी भाग और [[दाँत]] आदि की आकृति, कार्यकरण, रक्षा तथा सुधार और इन अंगों तथा शरीर के अंत:संबंध से है। इसके अंतर्गत शरीर के रोगों के मुख संबंधी लक्षण, मुख के भीतर के रोग, घाव, विकृतियाँ, त्रुटियाँ, रोग अथवा दुर्घटनाओं से क्षतिग्रस्त दाँतों की मरम्मत और टूटे दाँतों के बदले कृत्रिम दाँत लगाना, ये सभी बातें आती हैं। इस प्रकार दंतचिकित्सा का क्षेत्र लगभग उतना ही बड़ा है, जितना [[नेत्र]] या [[त्वचाचिकित्सा]] का। इसका सामाजिक महत्व तथा सेवा करने का अवसर भी अधिक है। दंतचिकित्सक का व्यवसाय स्वतंत्र संगठित है और यह स्वास्थ्यसेवाओं का महत्वपूर्ण विभाग है। दंतचिकित्सा की कला और विज्ञान के लिये मुख की संरचना, दाँतों की उत्पत्ति विकास तथा कार्यकरण और इनके भीतर के अन्य अंगों और ऊतकों तथा उनके औषधीय, शल्य तथा यांत्रिक उपचार का समुचित ज्ञान आवश्यक है।
 
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== भारत में दंतचिकित्सा ==
भारत में दंतचिकित्सकों और उनके सहायकों की बड़ी कमी है। यहाँ प्रथम श्रेणी में केवल 655 दंतचिकित्सक हैं और द्वितीय श्रेणी में 2,473। स्वास्थ्य संगठन और स्वास्थ्य परिस्थितियों के संरक्षण के लिये सरकार ने भोर समिति नियुक्त की थी। उसका प्रतिवेदन 1946 ईदृ में उपस्थित किया गया था। उसकी संस्तुति है कि 5,000 व्यक्तियों के पीछे एक दंतचिकित्सक अवश्य होना चाहिए, यद्यपि पाश्चात्य देशों में 3,000 व्यक्तियों के पीछे कम से कम एक दंतचिकित्सक परमावश्यक समझा जाता है। भोर समिति की संस्तुति के अनुसार 30-35 वर्षों में 75,000 दंतचिकित्सकों की आवश्यकता पड़ेगी। फलत: इस काल में कम से कम ढाई हजार दंतचिकित्सक प्रति वर्ष प्रशिक्षित करने पड़ेंगे। ऐसा तभी संभव है जब 25 दंतचिकित्सक विद्यालय खोले जायँ, जिसमें प्रति वर्ष 100 विद्यार्थी भरती किए जायँ। इस समय 4,00,000 व्यक्तियों के पीछे केवल एक दंतचिकित्सक है। न्यूज़ीलैंड में पहले इसी प्रकार दंतचिकित्सकों की कमी थी और उसकी पूर्ति दंतचिकित्सक परिचारिकाओं के प्रशिक्षण से की गई। उनका प्रशिक्षण दो वर्ष तक होता था। उनकी न्यूनतम योग्यता यह थी कि वे हाई स्कूल परीक्षा पास हों। इन परिचारिकाओं में इतनी योग्यता आ जाती थी कि वे दंतचिकित्सा की सरलतम क्रियाएँ कर सकें। साधारण दंतचिकित्सक का अधिकतर समय इन्हीं सरल क्रियाओं में लग जाता है। इनमें विशेष निपुणता की आवश्यकता नहीं होती। भारत में बहुत से हाई स्कूल उत्तीर्ण व्यक्ति बेकार बैठे रहते हैं। उनमें से कई एक इस काम को सुगमता से सीख सकते हैं। प्रशिक्षित होने पर वे योग्य दंतचिकित्सकों की देखरेख में अस्पतालों तथा दाँत के स्कूलों में सहायक का काम कर सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को "दंतरक्षक" कहा जा सकता है। उन्हें सरकारी खर्च से प्रशिक्षित किया जा सकता है, और उनसे अनुबंध लिखा लिया जा सकता है कि वे पाँच से दस वर्ष तक अवश्य काम करेंगे।
 
संस्तुति की गई है कि तीन प्रकार के व्यक्ति प्रशिक्षित किए जायँ :
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== दंतचिकित्सा शिक्षा ==
भारत में प्रथम दंतचिकित्सा शाला सन् 1920 ईदृ में [[कोलकाता|कलकत्ते]] में खोली गई थी। 1926 ईदृ में दूसरी शाला [[कराची]] में खुली। नैयर दंतचिकित्सा विद्यालय 1933 ईदृ में खुला। सन् 1936 में लाहौर के डे मॉण्टमोरेंसी कॉलेज ऑव डेंटिस्ट्री में बीदृ डीदृ एसदृ उपाधि के लिये नियमित शिक्षा आरंभ हुई। सन् 1945 में एमदृ'एम डीदृडी एसदृएस' उपाधि के लिये पढ़ाई प्रारंभ की गई। सन् 1949 में उत्तर प्रदेश में एक दंतचिकित्सा विद्यालय, लखनऊ में खोला गया और किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज से संबद्ध कर दिया गया। वर्तमान काल में ये सात दंतचिकित्सा विद्यालय हैं जो किसी न किसी विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं :
 
1. डेंटल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल, किंग जॉर्जेज़ मेडिकल कॉलेज, लखनऊ।