"अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार'": अवतरणों में अंतर

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{{wikify}}74 साल के शहरयार का पूरा नाम कुंवर अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान है, लेकिन इन्हें इनके तख़ल्लुस या उपनाम 'शहरयार' से ही पहचाना जाना जाता है. 1961 में उर्दू में स्नातकोत्तर डिग्री लेने के बाद उन्होंने 1966 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू के लेक्चरर के तौर पर काम शुरू किया.
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'''अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान''' (१६ जून १९३६ – १३ फरवरी २०१२<ref name=jagran>{{cite news|title=शायरी के शहजादे सुपुर्द-ए-खाक|url=http://www.jagran.com/news/national-shahryar-buried-8896902.html|accessdate=14 February 2012|publisher=[[दैनिक जागरण]]|date=14 February 2012|place=अलीगढ़|language=हिन्दी}}</ref>), जिन्हें उनके तख़ल्लुस या उपनाम '''शहरयार''' से ही पहचाना जाना जाता है, एक [[भारतीय]] [[शिक्षाविद्]], और भारत में [[शायरी|उर्दू शायरी]] के दिग्गज थे।
वह यहीं से उर्दू विभाग के अध्यक्ष के तौर पर सेवानिवृत्त भी हुए. शहरयार ने गमन और आहिस्ता- आहिस्ता आदि कुछ हिंदी फ़िल्मों में गीत लिखे लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा लोकप्रियता 1981 में बनी फ़िल्म 'उमराव जान' से मिली.
 
==आरंभिक जीवन==
वर्ष 2008 के लिए 44 वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे गये शहरयार का जन्म 1936 में हुआ. बेहद जानकार और विद्वान शायर के तौर पर अपनी रचनाओं के जरिए वह स्व अनुभूतियों और खुद की कोशिश से आधुनिक वक्त की समस्याओं को समझने की कोशिश करते नजर आते हैं.
१९६१ में उर्दू में स्नातकोत्तर डिग्री लेने के बाद उन्होंने १९६६ में [[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय]] में उर्दू के लेक्चरर के तौर पर काम शुरू किया। वह यहीं से उर्दू विभाग के अध्यक्ष के तौर पर १९९६ में सेवानिवृत्त हुए।
 
==कार्य==
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं, जुस्तजू जिस की थी उसको तो न पाया हमने, दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये, कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता. जैसे गीत लिख कर हिंदी फ़िल्म जगत में शहरयार बेहद लोकप्रिय हुये हैं.
बेहद जानकार और विद्वान शायर के तौर पर अपनी रचनाओं के जरिए वह स्व-अनुभूतियों और आधुनिक वक्त की समस्याओं को समझने की कोशिश करते नजर आते हैं। शहरयार ने गमन और आहिस्ता-आहिस्ता आदि कुछ हिंदी फ़िल्मों में गीत लिखे, लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा लोकप्रियता १९८१ में बनी फ़िल्म [[उमराव जान]] से मिली। "इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं," "जुस्तजू जिस की थी उसको तो न पाया हमने," "दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये," "कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता" - जैसे गीत लिख कर [[बॉलीवुड|हिंदी फ़िल्म जगत]] में शहरयार बेहद लोकप्रिय हुए हैं।<ref name=ibn7>{{cite news|title=जमीं की गोद में सदा के लिए सो गया शब्दों का चितेरा|url=http://khabar.ibnlive.in.com/news/67143/6/23|accessdate=14 February 2012|publisher=[[आईबीएन ७|आईबीएन-7]]|date=14 February 2012|place=अलीगढ़|language=हिन्दी}}</ref>
 
==पुरस्कार एवं सम्मान==
इसयह वक्तवर्ष की२००८ जदीदके लिए ४४वें [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] से नवाजे गये। समकालीन उर्दू शायरी कोके गढ़नेजगत में अहम भूमिका निभाने वाले शहरयार को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]], दिल्ली उर्दू पुरस्कार और फ़िराक सम्मान सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया.गया।
 
==संदर्भ==
<references/>
 
[[श्रेणी:हिन्दी गीतकार]]