"पुष्य नक्षत्र": अवतरणों में अंतर

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हमेशा प्रयोग कर्ता को अपने व प्रयोग के लिये उपयोग किये जा रहे व्‍यक्‍ति के ग्रहों की स्‍थिति का गहरा ज्ञान अवश्‍य कर लेना चाहिये । सदैव टकराव ग्रहों का ग्रहों से होता है , और जिसके ग्रह नक्षत्र योग तिथि आदि बलवान होते हें , सदैव वही विवजयी होता है ।यह तथ्‍य भी स्‍मरण रखना चाहिये कि पैदल पर पैदल का वार, और सवार पर सवार का वार , राजा पर राजा का वार ही सर्वोचित एवं सर्वोत्‍तम नीति है ।पुष्‍य नक्षत्र के मध्‍य में यानि द्वितीय एवं तृतीय चरण में जनमे लोग बेहद प्रबल होते हैं, इनसे सदैव तंत्र आदि प्रयोंगों से दूर ही रहना चाहिये । आल्‍हा में एक पंक्‍ति इस संबंध में एक पंक्‍ति कही गयी है - पुष्‍य नक्षत्र में मलखे जनमो, बारहीं परी है बिसपित जाय । अष्‍ट सनीचर आय कें बैठो देखत किला भसम होय जाय ।।आचार्य चाणक्‍य का सूत्र है कि ग्रह ही राज्‍य देते हें , ग्रह ही राज्‍य का हरण कर लेते हें । अत: जन्‍मकुण्‍डली के ग्रहों , चालू गोचर के ग्रहों आदि का इन प्रयोंगों में विचार करना अत्‍यंत आवश्‍यक रहता है ।इसी प्रकार पति अपनी पत्‍नी पर और पत्‍नी अपने पति पर तंत्र प्रयोग न करे , इस प्रकार के प्रयोग मर्यादा विरूद्ध हैं । पिता पुत्र पर और पुत्र अपने पिता पर , सगे भाई एक दूसरे पर, बहिन भाई एक दूसरे पर कभी भूल कर भी ऐसे प्रयोग न करें क्‍योंकि ये मर्यादा विरूद्ध होने के साथ रक्‍तांश के कारण करने वाले पर स्‍वयं पर भी वार करते हैं , वहीं पति पत्‍नी आपस में अर्धांग होने से खुद ही खुद पर वार कर बैठते हें जिससे उन दोनों को खुद ही खुद द्वारा हानि पहुँचा दी जाती है ।भोजन करते व्‍यक्‍ति, सो रहे निद्रा मग्‍न व्‍यक्‍ति, संभोग अथवा मैथुनरत व्‍यक्ति, बीमार, वृद्ध और बच्‍चों पर भी ऐसे प्रयोग मर्यादा विरूद्ध होते हैं ।
== बाहरी कड़ी ==
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