"नादिर शाह": अवतरणों में अंतर

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== साफवियों का अन्त ==
उस समय फ़ारस की गद्दी पर [[साफ़वीसफ़वी वंश|साफ़वियों]] का शासन था। लेकिन नादिर शाह का भविष्य शाह के तख़्तापलट के कारण नहीं बना जो कि प्रायः कई सफल सेनानायकों के साथ होता है। उसने साफवियों का साथ दिया। उस समय साफ़वी अपने पतनोन्मुख साम्राज्य में नादिर शाह को पाकर बहुत प्रसन्न हुए। एक तरफ़ से [[उस्मानी साम्राज्य]] (ऑटोमन तुर्क) तो दूसरी तरफ़ से [[अफ़ग़ान|अफ़गानों]] के विद्रोह ने साफवियों की नाक में दम कर रखा था। इसके अलावा उत्तर से [[रूसी साम्राज्य]] भी निगाहें गड़ाए बैठा था। [[शाह सुल्तान हुसैन]] के बेटे तहमास्य (तहमाश्प) को नादिर का साथ मिला। उसके साथ मिलकर उसने उत्तरी ईरान में [[मशहद]] ([[ख़ोरासान]] की राजधानी) से अफगानों को भगाकर अपने अधिकार में ले लिया। उसकी इस सेवा से प्रभावित होकर उसे ''तहमास्य कोली ख़ान'' ('तहमास्प का सेवक' या 'गुलाम-ए-तहमास्य') की उपाधि मिली। यह एक सम्मान था क्योंकि इससे उसे शाही नाम मिला था। पर नादिर इतने पर मुतमयिन (संतुष्ट) हो जाने वाला सेनानायक नहीं था।
 
नादिर ने इसके बाद हेरात के अब्दाली अफ़ग़ानों को परास्त किया। तहमाश्प के दरबार में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के बाद उसने १७२९ में राजधानी इस्फ़हान पर कब्ज़ा कर चुके अफ़ग़ानों पर आक्रमण करने की योजना बनाई। इस समय एक [[यूनानी]] व्यापारी और पर्यटक बेसाइल वतात्ज़ेस ने नादिर के सैन्य अभ्यासों को आँखों से देखा था। उसने बयाँ किया - ''नादिर अभ्यास क्षेत्र में घुसने के बाद अपने सेनापतियों के अभिवादन की स्वीकृति में अपना सर झुकाता था। उसके बाद वो अपना घोड़ा रोकता था और कुछ देर तक सेना का निरीक्षण एकदम चुप रहकर करता था। वो अभ्यास आरंभ होने की अनुमति देता था। इसके बाद अभ्यास आरंभ होता था - चक्र, व्यूह रचना और घुड़सवारी इत्यादि.. '' नादिर खुद तीन घंटे तक घोड़े पर अभ्यास करता था।