"मंदर पर्वत": अवतरणों में अंतर

छो Removing {{आधार}} template using AWB (6839)
पंक्ति 13:
==इतिहास==
पुरातत्ववेत्ताओं के मुताबिक मंदार पर्वत की अधिकांश मूर्तियां उत्तर गुप्त काल की हैं। उत्तर गुप्त काल में मूर्तिकला की काफी सन्नति हुई थी। मंदार के सर्वोच्च शिखर पर एक मंदिर है, जिसमें एक प्रस्तर पर पद चिह्न अंकित है। बताया जाता है कि ये पद चिह्न भगवान विष्णु के हैं। पर जैन धर्मावलंबी इसे प्रसिद्ध तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य के चरण चिह्न बतलाते हैं और पूरे विश्वास और आस्था के साथ दूर-दूर से इनके दर्शन करने आते हैं। एक ही पदचिह्न को दो संप्रदाय के लोग अलग-अलग रूप में मानते हैं लेकिन विवाद कभी नहीं होता है। इस प्रकार यह दो संप्रदाय का संगम भी कहा जा सकता है। इसके अलावा पूरे पर्वत पर यत्र-तत्र अनेक सुंदर मूर्तियां हैं, जिनमें शिव, सिंह वाहिनी दुर्गा, महाकाली, नरसिंह आदि की प्रतिमाएं प्रमुख हैं। चतुर्भुज विष्णु और भैरव की प्रतिमा अभी भागलपुर संग्रहालय में रखी हुई हैं। फ्रांसिस बुकानन, मार्टिन हंटर और ग्लोब जैसे पाश्चात्य विद्वानों की आत्मा जिन्हें मंदार के सौंदर्य ने कभी प्रभावित किया था, सदियों से प्राकृतिक आपदाएं सहन करती हुई ये मूर्तियां उद्धार के लिए तरसती होंगी । स्थानीय लोगों ने इन प्राचीन मूर्तियों का आकार परिवर्तित कर इच्छा के मुताबिक देवी-देवता के रूप में स्थापित कर लिया है और भक्तों को आकर्षित कर पैसा कमाया जा रहा है। इससे प्राचीन मूर्तियों का अस्तित्व खतरे में है। पर्वत परिभ्रमण के बाद लोग बौंसी मेला की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। बौंसी स्थित भगवान मधुसूदन के मंदिर में साल भर श्रद्धालु भक्तों का तांता लगा रहता है। मकर संक्रांति के दिन यहां से आकर्षक शोभायात्रा निकलती है।
 
== सन्दर्भ ==
<references/>
{{Reflist}}
 
[[श्रेणी:हिन्दु पौराणिक स्थल]]