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[[File:Areas pachtun.jpg|thumb|230px|[[अफ़्ग़ानिस्तान]] और [[पाकिस्तान]] के नक़्शे में पश्तून क्षेत्र (हरे रंग में)]]
पाठान एक मुसलमान खानदान हैं ।वे पाकिस्तान और अफ़गनिस्तान के बीच वाले पहाड़ों से आते हैं (वाज़िरिस्तान इलाक़े में) ।आजकल पाठान सोल भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में रहते हैं।
'''पश्तून''', '''पख़्तून''' (<small>[[पश्तो]]: {{Nastaliq|ur|پښتانه}}, पश्ताना</small>) या '''पठान''' (<small>[[उर्दू]]:{{Nastaliq|ur|پٹھان}}</small>) [[दक्षिण एशिया]] में बसने वाली एक लोक-जाति है। वे मुख्य रूप में [[अफ़्ग़ानिस्तान]] में [[हिन्दू कुश पर्वतों]] और [[पाकिस्तान]] में [[सिन्धु नदी]] के दरमियानी क्षेत्र में रहते हैं हालांकि पश्तून समुदाय अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और [[भारत]] के अन्य क्षेत्रों में भी रहते हैं। पश्तूनों की पहचान में [[पश्तो]] भाषा, [[पश्तूनवाली]] मर्यादा का पालन और किसी ज्ञात पश्तून क़बीले की सदस्यता शामिल हैं।
{{आधार}}पख्तून बनी इस्राएल में से हैं। पख्तुन का इतिहास लगभग 5 हज़ार साल से भी पुराना है। यह अलिखित तरिके से पीढी दर पीढी चला आ रहा है। पख्तून का बनी इस्राएल होना न केवल पख्तून साहित्य से, बल्कि अन्य ग्रन्थों से भी साबित होता है। असीरियन साम्राज्य के समय पर लगभग 2800 साल पहले बनी इस्राएल के दस कबीलों को देश निकाला दे दिया गया था। यही कबीले पख्तून हैं। ॠग्वेद जिसकी रचना ईसा से 1300 वर्ष पूर्व की गयी थी, उसमे भी पख्तून का वर्णन दुश्मन समूह के रूप में मिलता है। ( 4 25 7 ) हेरोडोटल अपनी इतिहास की किताब में पख्तून का वर्णन "Paktyakai" (Book IV v.44) के रूप में करता है। इसी प्रकार पख्तून एक एक कबीले आफ़रीदी का वर्णन "Aparytai" = Afridis (Book III v.91) in के रूप में करता है। पख्तून के बनी इस्राएल होने की बात जहांगीर के समय लिखी गयी किताब “मगज़ाने अफ़ग़ानी” में भी लिखी गयी मिलती है जो सोलहवीं सदी ईस्वी में लिखी गयी थी। अंग्रेज़ लेखक अलेक्ज़ेंडर बर्न ने अपनी बुखारा की यात्राओं के बारे मे 1835 में लिखा उसमें भी उसने पख्तून के द्वारा खुद को बनी इस्राएल मानने के बारे में लिखा है। हालांकि पखून खुद को बनी इस्राएल मानते हैं, लेकिन वे मुसलमान हैं खुद को यहूदी नहीं मानते। पख्तून की कई परंपराएं बनी इस्राएल जैसी ही हैं। सर अलेक्ज़ेन्डर बर्न्स पुनः सन 1837 के बारे में लिखता है कि उसने उस समय के अफ़ग़ान राजा दोस्त मोहम्मद से इसके बारे में पूछा तो उसका जवाब था कि उसकी प्रजा बनी इस्राएल है इसमें संदेह नहीं लेकिन इसमें भी संदेह नहीं कि वे लोग मुसलमान हैं एवं यहूदियों द्वारा की जाने वाली बदमाशियों का समर्थन नहीं करेंगे। विलियम मूर क्राफ़्ट ने भी 1819 व 1825 के बीच भारत पन्जाब अफ़ग़ानिस्तान समेत कई देशों की यात्रा की वह भी लिखता है की पख्तून का रंग शरीर नाक नक्श आदि सभी कुछ बनी इस्राएल जैसा है।J. B. Frazer भी अपनी किताब An Historical and Descriptive Account of Persia and Afghanistan, जो 1843 में प्रकाशित हुई, लिखता है कि पख्तून खुद को बनी इस्राएल मानते हैं एव उन्होने इस्लाम अपनाने से पहले भी अपने धर्म की शुद्धता को बरकरार रखा। [J.B. Frazer, A Historical and Descriptive Account of Persia and Afghanistan, 298]जोसेफ़ फ़िएरे फ़ेरिएर अपनी अफ़ग़ानिस्तान के इतिहास के बारे में लिखी किताब में 1858 में लिखता है कि वह यह मानने पर उस समय मजबूर हो गया कि पख्तून बनी इस्राएल की दस खोई हुई ट्राइब हैं जब उसे यह जानकारी मिली कि नादिरशाह भारत विजय से पहले जब पेशावर से गुजर रहा था तो यूसुफ़ज़ाई कबीले के प्रधान ने उसे हीब्रू में लिखी हुआ बाइबिल व साथ कई अन्य लेख जो उनकी प्राचीन उपासना में उपयोग किये जाते थे, भेंट किये। इन्हें केंप मे मौजूद यहूदियों ने तुरंत पहचान लिया। उनके बीच में हीब्रू बाइबिल का मौजूद होना उनके बनी इस्राएल होने का सबूत है। जार्ज मूरे द्वारा इस्राएल की दस खोई हुई जातियों के बारे मे जो शोधपत्र 1861 में प्रकाशित किया गया है, उसमे भी उसने स्पष्ट लिखा है कि बनी इस्राएल की दस खोई हुई जातियों को अफ़ग़ानिस्तान व भारत के अन्य हिस्सों में खोजा जा सकता ह। वह लिखता है कि उनके अफ़्गानिस्तान मे होने के पर्याप्त सबूत मिलते हैं। वह लिखता है कि पख्तून की सभ्यता संस्क्रति, उनका व उनके ज़िलों गावों आदि का नामकरण सभी कुछ बनी इस्राएल जैसा ही है। [George Moore,The Lost Tribes]इसके अलावा सर जान मेक़मुन, Sir George Macmunn (Afghanistan from Darius to Amanullah, 215), कर्नल जे बी माल्लेसोन (The History of Afghanistan from the Earliest Period to the outbreak of the War of 1878, 39), कर्नल फ़ैलसोन (History of Afghanistan, 49),जार्ज बेल (Tribes of Afghanistan, 15), ई बलफ़ोर (Encyclopedia of India, article on Afghanistan), सर हेनरी यूल Sir Henry Yule (Encyclopædia Britannica, article on Afghanistan), व सर जार्ज रोज़ (Rose, The Afghans, the Ten Tribes and the Kings of the East, 26).भी इसी नतीजे पर पहुंचे हैं हालांकि उनमे से किसी को भी एक दूसरे के लेखों की जानकारी नहीं थी। मेजर ए व्ही बेलो (Major H. W. Bellew,) कन्दाहार राजनीतिक अभियान पर गया था, इस अभियान के बारे मे Journal of a Mission to Kandahar, 1857-8. में फिर दोबारा 1879 मे अपनी किताब Afghanistan and Afghans. मे एवं 1880 मे अपने दो लेक्चरों मे जो the United Services Institute at Simla: "A New Afghan Question, or "Are the Afghans Israelites?" विषय पर कहता है एवं The Races of Afghanistan. नामक किताब मे भी यही बात लिखता है फिर सारी बातें An Enquiry into the Ethnography of Afghanistan, जो 1891 में प्रकाशित हुई, यही सब बातें लिखता है।
 
पठान जाति की जड़े कहाँ थी इस बात का इतिहासकारों को ज्ञान नहीं लेकिन [[संस्कृत]] और [[यूनानी]] स्रोतों के अनुसार उनके वर्तमान इलाक़ों में कभी पक्ता नामक जाति रहा करती थी जो संभवतः पठानों के पूर्वज रहें हों। सन् १९७९ के बाद अफ़्ग़ानिस्तान में असुरक्षा के कारण जनगणना नहीं हो पाई है लेकिन [[ऍथनोलॉग]] के अनुसार पश्तून की जनसँख्या ५ करोड़ के आसपास अनुमानित की गई है। पश्तून क़बीलों और ख़ानदानों का भी शुमार करने की कोशिश की गई है और अनुमान लगाया जाता है कि विश्व में लगभग ३५० से ४०० पठान क़बीले और उपक़बीले हैं। पश्तून जाति अफ़्ग़ानिस्तान का सबसे बड़ा समुदाय है।
 
==विवरण==
{{आधार}}पाठान पाकिस्तान और अफ़गनिस्तान के बीच वाले पहाड़ों से आते हैं (वाज़िरिस्तान इलाक़े में) ।आजकल पाठान सोल भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में रहते हैं। पख्तून बनी इस्राएल में से हैं। पख्तुन का इतिहास लगभग 5 हज़ार साल से भी पुराना है। यह अलिखित तरिके से पीढी दर पीढी चला आ रहा है। पख्तून का बनी इस्राएल होना न केवल पख्तून साहित्य से, बल्कि अन्य ग्रन्थों से भी साबित होता है। असीरियन साम्राज्य के समय पर लगभग 2800 साल पहले बनी इस्राएल के दस कबीलों को देश निकाला दे दिया गया था। यही कबीले पख्तून हैं। ॠग्वेद जिसकी रचना ईसा से 1300 वर्ष पूर्व की गयी थी, उसमे भी पख्तून का वर्णन दुश्मन समूह के रूप में मिलता है। ( 4 25 7 ) हेरोडोटल अपनी इतिहास की किताब में पख्तून का वर्णन "Paktyakai" (Book IV v.44) के रूप में करता है। इसी प्रकार पख्तून एक एक कबीले आफ़रीदी का वर्णन "Aparytai" = Afridis (Book III v.91) in के रूप में करता है। पख्तून के बनी इस्राएल होने की बात जहांगीर के समय लिखी गयी किताब “मगज़ाने अफ़ग़ानी” में भी लिखी गयी मिलती है जो सोलहवीं सदी ईस्वी में लिखी गयी थी। अंग्रेज़ लेखक अलेक्ज़ेंडर बर्न ने अपनी बुखारा की यात्राओं के बारे मे 1835 में लिखा उसमें भी उसने पख्तून के द्वारा खुद को बनी इस्राएल मानने के बारे में लिखा है। हालांकि पखून खुद को बनी इस्राएल मानते हैं, लेकिन वे मुसलमान हैं खुद को यहूदी नहीं मानते। पख्तून की कई परंपराएं बनी इस्राएल जैसी ही हैं। सर अलेक्ज़ेन्डर बर्न्स पुनः सन 1837 के बारे में लिखता है कि उसने उस समय के अफ़ग़ान राजा दोस्त मोहम्मद से इसके बारे में पूछा तो उसका जवाब था कि उसकी प्रजा बनी इस्राएल है इसमें संदेह नहीं लेकिन इसमें भी संदेह नहीं कि वे लोग मुसलमान हैं एवं यहूदियों द्वारा की जाने वाली बदमाशियों का समर्थन नहीं करेंगे। विलियम मूर क्राफ़्ट ने भी 1819 व 1825 के बीच भारत पन्जाब अफ़ग़ानिस्तान समेत कई देशों की यात्रा की वह भी लिखता है की पख्तून का रंग शरीर नाक नक्श आदि सभी कुछ बनी इस्राएल जैसा है।J. B. Frazer भी अपनी किताब An Historical and Descriptive Account of Persia and Afghanistan, जो 1843 में प्रकाशित हुई, लिखता है कि पख्तून खुद को बनी इस्राएल मानते हैं एव उन्होने इस्लाम अपनाने से पहले भी अपने धर्म की शुद्धता को बरकरार रखा। [J.B. Frazer, A Historical and Descriptive Account of Persia and Afghanistan, 298]जोसेफ़ फ़िएरे फ़ेरिएर अपनी अफ़ग़ानिस्तान के इतिहास के बारे में लिखी किताब में 1858 में लिखता है कि वह यह मानने पर उस समय मजबूर हो गया कि पख्तून बनी इस्राएल की दस खोई हुई ट्राइब हैं जब उसे यह जानकारी मिली कि नादिरशाह भारत विजय से पहले जब पेशावर से गुजर रहा था तो यूसुफ़ज़ाई कबीले के प्रधान ने उसे हीब्रू में लिखी हुआ बाइबिल व साथ कई अन्य लेख जो उनकी प्राचीन उपासना में उपयोग किये जाते थे, भेंट किये। इन्हें केंप मे मौजूद यहूदियों ने तुरंत पहचान लिया। उनके बीच में हीब्रू बाइबिल का मौजूद होना उनके बनी इस्राएल होने का सबूत है। जार्ज मूरे द्वारा इस्राएल की दस खोई हुई जातियों के बारे मे जो शोधपत्र 1861 में प्रकाशित किया गया है, उसमे भी उसने स्पष्ट लिखा है कि बनी इस्राएल की दस खोई हुई जातियों को अफ़ग़ानिस्तान व भारत के अन्य हिस्सों में खोजा जा सकता ह। वह लिखता है कि उनके अफ़्गानिस्तान मे होने के पर्याप्त सबूत मिलते हैं। वह लिखता है कि पख्तून की सभ्यता संस्क्रति, उनका व उनके ज़िलों गावों आदि का नामकरण सभी कुछ बनी इस्राएल जैसा ही है। [George Moore,The Lost Tribes]इसके अलावा सर जान मेक़मुन, Sir George Macmunn (Afghanistan from Darius to Amanullah, 215), कर्नल जे बी माल्लेसोन (The History of Afghanistan from the Earliest Period to the outbreak of the War of 1878, 39), कर्नल फ़ैलसोन (History of Afghanistan, 49),जार्ज बेल (Tribes of Afghanistan, 15), ई बलफ़ोर (Encyclopedia of India, article on Afghanistan), सर हेनरी यूल Sir Henry Yule (Encyclopædia Britannica, article on Afghanistan), व सर जार्ज रोज़ (Rose, The Afghans, the Ten Tribes and the Kings of the East, 26).भी इसी नतीजे पर पहुंचे हैं हालांकि उनमे से किसी को भी एक दूसरे के लेखों की जानकारी नहीं थी। मेजर ए व्ही बेलो (Major H. W. Bellew,) कन्दाहार राजनीतिक अभियान पर गया था, इस अभियान के बारे मे Journal of a Mission to Kandahar, 1857-8. में फिर दोबारा 1879 मे अपनी किताब Afghanistan and Afghans. मे एवं 1880 मे अपने दो लेक्चरों मे जो the United Services Institute at Simla: "A New Afghan Question, or "Are the Afghans Israelites?" विषय पर कहता है एवं The Races of Afghanistan. नामक किताब मे भी यही बात लिखता है फिर सारी बातें An Enquiry into the Ethnography of Afghanistan, जो 1891 में प्रकाशित हुई, यही सब बातें लिखता है।
Iइस किताब मे वह क़िला यहूदी का वर्णन करता है। ("Fort of the Jews") (H.W. Bellew, An Enquiry into the Ethnography of Afghanistan, 34), जो कि उनके देश की पूर्वी सीमा का नाम थ। वह दश्त ए यहूदी का भी वर्णन करता है। Dasht-i-Yahoodi ("Jewish plain") (ibid., 4),जो मर्दान ज़िले मे एक जगह है। वह इस नतीजे पर पहुंचा कि अफ़ग़ानों का याक़ूब, इसाइयाह मूसा एक्षोडस इस्राएली युद्धों फ़िलिस्तीन विजय आर्च ओफ़ कोवीनेंट साऊल का राज्याभिषेक आदि आदि के बारे मे बताया जाना व सबूत मिलना जो कि केवल बाईबिल मे ही मिल सकते थे, जबकि वहां पर हमसे पहले कोई ईसाई गया नहीं था, यह स्पष्ट करता है की अफ़ग़ान लोग बाइबिल की पाँच किताबों के ज्ञाता थे। इसका केवल एक ही सार निकलता है कि वे बनी इस्राएल थे व अपनी परंपराओं के तहत पीढी दर पीढी ज्ञान को बचाए रखा। (Ibid., 191) थोमस लेड्ली ने Calcutta Review, मे एक लेख लिखा जो उसने दो भागो मे प्रकाशित किया। जिसमे वह लिखता है कि यूरोपीय लोग उस समय खुद को भ्रम में डाल देते हैं जब वे इस सच्चाई पर बात करते हैं कि अफ़ग़ान लोग खुद को बनी इस्राएल कहते हैं लेकिन साथ ही यहूदी मूल के होने से इंकार करते हैं। उसी के शब्दों में देखें। "The Europeans always confuse things, when they consider the fact that the Afghans call themselves Bani Israel and yet reject their Jewish descent. Indeed, the Afghans discard the very idea of any descent from the Jews. They, however, yet claim themselves to be of Bani Israel." [Thomas Ledlie, More Ledlian,Calcutta Review, January, 1898] लेडली इसे समझाने की कोशिश करते हुए लिखता है कि दाऊद के घर से अलग होने के बाद बनी इस्राएल मे से केवल यहूदा के घराने का नाम यहूदी पड़ा एवं उसके बाद से उनका अपना अन्य बनी इस्राएल से अलग इतिहास हैं उसी के शब्दों मे देखें तो वह इस प्रकार लिखता है। "Israelites, or the Ten Tribes, to whom the term Israel was applied – after their separation from the House of David, and the tribe of Judah, which tribe retained the name of Judah and had a distinct history ever after. These last alone are called Jews and are distinguished from the Bani Israel as much in the East as in the West." [Ibid., 7]
आधुनिक इतिहास व शोध।
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भारत के कै इलको मे पठान रेह्ते हे खास तोरसे अह्मदाबाद, विजपुर, हिमतनहगर, पलन्पुर,
 
==इन्हें भी देखें==
{{Link FA|en}}
*[[पश्तो भाषा]]
*[[ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा]]
 
==सन्दर्भ==
<small>{{reflist|2}}</small>
 
{{Link FA|en}}
[[श्रेणी:पश्तून लोग]]
[[श्रेणी:अफ़्गानिस्तान की जातियाँ]]
[[श्रेणी:पाकिस्तान की जातियाँ]]
[[श्रेणी:भारत की जातियाँ]]
 
[[an:Paixtuns]]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/पठान" से प्राप्त