"ऊतकविज्ञान": अवतरणों में अंतर

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ऊतकों की संरचना में तीन प्रकार के मुख्य घटक दिखलाई देते हैं : कोशिकाएँ, मैट्रिक्स तथा तरल द्रव्य।
 
===कोशिकाएँ (cellcells)===
{{मुख्य|कोशिका}}
 
ऊतकों की इकाई कोशिका होती है। कोशिकाएँ सजीव होती हैं तथा वे सभी कार्य करती हैं, जिन्हें सजीव प्राणी करते हैं। इनका आकार अतिसूक्ष्म तथा आकृति गोलाकार, अंडाकार, स्तंभाकार, रोमकयुक्त, कशाभिकायुक्त, बहुभुजीय आदि प्रकार की होती है। ये जेली जैसी एक वस्तु द्वारा आवृत्त होती हैं। इस आवरण को कोशिकावरण (cell membrane) या कोशिका-झिल्ली कहते हैं। इसे कभी-कभी जीव-द्रव्य-कला (plasma membrane) भी कहा जाता है। इसके भीतर निम्नलिखित संरचनाएँ पाई जाती हैं:-
 
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(2) जीवद्रव्य
 
(3) golgiगोल्गी सम्मिश्र या यंत्र
 
(4) कणाभ सूत्र
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(8) लवक
 
'''(1) केंद्रक''' (nucleus)-एक कोशिका में सामान्यतया एक ही केंद्रक होता है, किंतु कभी-कभी एक से अधिक केंद्रक भी पाए जाते हैं। कोशिका के समस्त कार्यों का यह संचालन केंद्र होता है। जब कोशिका विभाजित होती है तो इसका भी विभाजन हो जाता है। केंद्रक कोशिका के भीतर एक तरल पदार्थ कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में प्राय: तैरता रहता है। इसका यद्यपि कोई निश्चित स्थान नहीं होता, तथापि यह अधिकतर लगभग मध्यभाग में ही स्थित होता है। कुछ कोशिकाओं में इसकी स्थिति आधारीय (basal) और कुछ में सीमांतीय (peripheral) भी होती है। केंद्रक की आकृति गोलाकार, वर्तुलाकार या अंडाकार होती है। तथापि, कभी-कभी यह बेलनाकार, दीर्घवृत्ताकार, सपात, शाखान्वित, नाशपाती जैसा, भालाकार आदि स्वरूपों का भी हो सकता है। इसके भीतर केंद्रकरस (nuclear sap) केंद्रिका (nucleolus) तथा पितृसूत्र (chromosomes) पाए जाते हैं। केंद्रक के आवरण को केंद्रककला (nuclear membrance or nucleolemma) कहते हैं।
 
'''केंद्रिका''' (Nucleolus)-प्रत्येक केंद्रक में एक या अधिक केंद्रिकाएँ पाई जाती हैं। कोशिकाविभाजन की कुछ विशेष अवस्था में केंद्रिका लुप्त हो जाती, किंतु बाद में पुन: प्रकट हो जाती है। केंद्रिका के भीतर रिबोन्यूक्लीइक अम्ल (ritioncleric acid or RNA) तथा कुछ विशेष प्रकार के एंज़ाइम अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। केंद्रिका सूत्रण (mitosis) या सूत्रीविभाजन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
 
'''(2) जीवद्रव्य''' (protoplasm)-यह एक गाढ़ा तरल पदार्थ होता है जो स्थानविशेष पर विशेष नामों द्वारा जाना जाता है; जैसे, द्रव्यकला (plasma membrane) तथा केंद्रक के मध्यवर्ती स्थान में पाए जानेवाले जीवद्रव्य को कोशिकाद्रव्य (cyt plasm) और केंद्रक झिल्ली (nuclear membrane) के भीतर पाए जानेवाले जीवद्रव्य को केंद्रक द्रव्य (nucleoplasm) कहते हैं। कोशिका का यह भाग अत्यंत चैतन्य और कोशिका की समस्त जैवीय प्रक्रियाओं का केंद्र होता है। इसे इसीलिए 'सजीव' (living) कहा जाता है। जीववैज्ञानिक इसे 'जीवन का भौतिक आधार' (physcial basis of life) नाम से संबोधित करते हैं। आधुनिक जीववैज्ञानिकों ने जीवद्रव्य का रासायनिक विश्लेषण करके यह तो पता लगा लिया है कि उसका निर्माण किन-किन घटकों द्वारा हुआ है, किंतु आज तक किसी भी वैज्ञानिक को उसमें (जीवद्रव्य) प्राण का संचार करने में सफलता हाथ नहीं लगी है। ऐसा है यह प्रकृति का रहस्यमय पदार्थ।
 
जीवद्रव्य का निर्माण कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा अनेक कार्बनिक (organic) तथा अकार्बनिक (inorganic) पदार्थो द्वारा हुआ होता है। इसमें जल की मात्रा लगभग 80% प्रोटीन 15% ,वसाएँ 3% तथा कार्बोहाइड्रेट 1% और अकार्बनिक लवण की 1 होती है। जीवद्रव्यों के कई प्रकार होते हैं, जैसे कोलाइड (colloid), कणाभ (granular), तंतुमय (fibrillar), जालीदार (reticular), कूपिकाकार (alveolar), आदि।
 
'''(3) गोल्गी सम्मिश्र या यंत्र''' (Golgi complex or apparatus)-इस अंग का यह नाम इसके आविष्कारक, कैमिलो गोल्गी, के नाम पर पड़ा है, जिन्होंने 1898 में सर्वप्रथम इसकी खोज की। यह अंग साधारणतया केंद्रक के समीप, अकेले या समूहों में पाया जाता है। इसकी रचना तीन तत्वों (elements) या घटकों (components) द्वारा हुई होती है : सपाट कोश (flattened sacs), बड़ी बड़ी रिक्तिकाएँ (large vacueles) तथा आशय (vesicles)। यह एक प्रकार के जाल (network) जैसा दिखलाई देता है। इनका मुख्य कार्य कोशिकीय स्रवण (cellular secretion) और प्रोटीनों, वसाओं तथा कतिपय किण्वों (enzymes) का भडारण करना (storage) है।
 
'''(4) कणाभसूत्र''' (Mitochondria)-ये कणिकाओं (granules) या शलाकाओं (rods) की आकृतिवाले होते हैं। ये अंगक (organelle) कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में स्थित होते हैं। इनकी संख्या विभिन्न जंतुओं में पाँच लाख तक हो सकती है। इनका आकार 1/2 माइक्रॉन से लेकर 2 माइक्रॉन के बीच होता है। विरल उदाहरणों (rare cases) में इनकी लंबाई 40 माइक्रॉन तक हो सकती है। इनके अनेक कार्य बतलाए गए हैं, जो इनकी आकृति पर निर्भर करते हैं। तथापि इनका मुख्य कार्य कोशिकीय श्वसन (cellular respiration) बतलाया जाता है। इन्हें कोशिका का 'पावर प्लांट' (power plant) कहा जाता है, क्योंकि इनसे आवश्यक ऊर्जा (energy) की आपूर्ति होती रहती है।
 
'''(5) अंतर्प्रद्रव्य जालिका''' (fndoplasmic reticulum)-यह जालिका कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में आशयों (vesicles) और नलिकाओं (tubules) के रूप में फैली रहती है। इसकी स्थिति सामान्यतया केंद्रकीय झिल्ली (nuclear membrane) तथा द्रव्यकला (plasma membrane) के बीच होती है, किंतु यह अकसर संपूर्ण कोशिका में फैली रहती है। यह जालिका दो प्रकार की होती है : चिकनी सतहवाली (smooth surfaced) और खुरदुरी सतहवाली (rough surfaced)। इसकी सतह खुरदुरी इसलिए होती है कि इसपर रिबोसोम (ribosomes) के कण बिखरे रहते हैं। इसके अनके कार्य बतलाए गए हैं, जैसे यांत्रिक आधारण (mechanical support), द्रव्यों का प्रत्यावर्तन (exchange of materials), अंत: कोशिकीय अभिगमन (intracellular transport), प्रोटोन संश्लेषण (protein synthesis) इत्यादि।
 
'''(6) गुणसूत्र''' या पितृसूत्र (chromosomes)–यह शब्द क्रोम (chrom) तथा सामा (soma) शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है : रंगीन पिंड (colour bodies)। गुणसूत्र केंद्रकों के भीतर जोड़ों (pairs) में पाए जाते हैं और कोशिकाविभाजन के साथ केंद्रक सहित बाँट जाया करते हैं। इनमें स्थित जीवों की पूर्वजों के पैत्रिक गुणों का वाहक कहा जाता है। इनकी संख्या जीवों में निश्चित होती है, जो एक दो जोड़ों से लेकर कई सौ जोड़ों तक हो सकती है। इनका आकार 1 माइक्रॉन से 30 माइक्रॉन तक (लंबा) होता है। इनकी आकृति साधारणतया अंग्रेजी भाषा के अक्षर S जैसी होती हैं। इनमें न्यूक्लिओ-प्रोटीन (nucleoprotein) मुख्य रूप से पाए जाते हैं। पितृसूत्रों के कुछ विशेष प्रकार भी पाए जाते हैं, जिन्हें लैंपब्रश पितृसूत्र (lampbrush chromosomes) और पोलोटीन क्रोमोसोम (polytene chromosomes) की संज्ञा दी गई है। इन्हें W, X, Y, Z, आदि नामों से संबोधित किया जाता है।
 
'''जीन''' (gene) - जीनों को पैत्रिक गुणों का वाहक (carriers of hereditary characters) माना जाता है। कोमोसोम या पितृसूत्रों का निर्माण हिस्टोन प्रोटीन तथा डिऑक्सीरिबोन्यूक्लीइक ऐसिड (DNA) तथा रिबोन्यूक्लीइक ऐसिड (RNA) से मिलकर हुआ होता है। जीन का निर्माण इन्हीं में से एक, डी एन,ए, द्वारा होता है। कोशिका विभाजनों के फलस्वरूप जब नए जी के जीवन का सूत्रपात होता है, तो यही जीन पैत्रिक एवं शरीरिक गुणों के साथ माता पिता से निकलकर संततियों में चले जाते हैं। यह आदान प्रदान माता के डिंब (ovum) तथा पिता के शुक्राणु (sperms) में स्थित जीनों के द्वारा संपन्न होता है। सन्‌ 1970 के जून मास में अमरीका स्थित भारतीय वैज्ञानिक श्री हरगोविंद खुराना को कृत्रिम जीन उत्पन्न करने में अभूतपूर्व सफलता मिली थी। इन्हें सन्‌ 1978 में नोबेल पुरस्कार मिला था।
 
'''(7) रिबोसोम''' (ribosomes)-सूक्ष्म गुलिकाओं के रूप में प्राप्त इन संरचनाओं को केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रॉस्कोप के द्वारा ही देखा जा सकता है। इनकी रचना 50% प्रोटीन तथा 50% आर एन ए द्वारा हुई होती है। ये विशेषकर अंतर्प्रद्रव्य जालिका के ऊपर पाए जाते हैं। इनमें प्रोटीनों का संश्लेषण होता है।
 
'''सेंट्रोसोम''' (centrosomes)–ये केंद्रक के समीप पाए जाते हैं। इनके एक विशेष भाग को सेंट्रोस्फीयर (centrosphere) कहते हैं, जिसके भीतर सेंट्रिओलों (centrioles) का एक जोड़ा पाया जाता है। कोशिकाविभाजन के समय ये विभाजक कोशिका के ध्रव (pole) का निर्धारण और कुछ कोशिकाओं में कशाभिका (flagella) जैसी संरचनाओं को उत्पन्न करते हैं।
 
'''(8) लवक''' (plastids)-लवक अधिकतर पौधों में ही पाए जाते हैं। ये एक प्रकार के रंजक कण (pigment granules) हैं, जो जीवद्रव्य (protoplasm) में यत्रतत्र बिखरे रहते हैं। क्लोरोफिल (chlorophyll) धारक वर्ण के लवक को हरित्‌ लवक (chloroplas) कहा जाता है। इसी के कारण वृक्षों में हरापन दिखलाई देता है। क्लोरोफिल के ही कारण पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) करते हैं। कुछ वैज्ञानिकों के मतानुसार लवक कोशिकाद्रव्यीय वंशानुगति (cytoplasmic inheritance) के रूप में कोशिका विभाजन के समय संततिकोशिकाओं में सीधे सीधे स्थानांतरित हो जाते हैं।
 
===मैट्रिक्स (matrix)===