"पेशीतन्त्र": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Muscle posterior labeled.png|300px|right|thumb|पीछे की पेशियाँ]]
'''पेशीतंत्र''' (मस्क्युलर सिस्टम) में केवल [[ऐच्छिक पेशी|ऐच्छिक पेशियों]] की गणना की जाती है, जो [[अस्थि]]यों पर लगी हुई हैं तथा जिनके संकुचन से अंगों की गति होती है और शरीर हिल-डुल तथा चल सकता है। पेशी एक अस्थि से निकलती है, जो उसका मूलबंध कहलाता है, और दूसरी अस्थि पर कंडरा द्वारा लगती है, जो उसका चेष्टाबिंदु होता है। कुछ ऐसी भी पेशियाँ हैं, जो कलावितान (aponeurosis) में लगती है। दोनों के बीच में लंगे लंबे मांससूत्र रहते हें, जिनकी संख्या बीच के भाग में अधिक होती है। जब पेशी संकुचन करती है तब खिंचाव होता है और जिस अस्थि पर उसका चेष्टाबिंदु होता है वह खिच कर दूसरी अस्थि के पास या उससे दूर चली जाती है। यह पेशी की स्थिति पर निर्भर करता है, किंतु संकुचन का रूप, अर्थात्‌ पेशीसूत्रों में होनेवाले रासायनिक तथा विद्युत्परिवर्तनों या क्रियाओं का रूप, एक समान होता है।
 
१. ललाट (frontalis) २. नासा (nasal), ३. उत्तर ओष्ठ चतुरस्रा (quadratus labii superioris) ५. सृक्कोत्कर्षणी (zygomaticus), ६. कैनाइनस (Caninus), ७. गलपार्श्वच्छदा (platysma myoides), ९. टैंगुलैरिस (tr.iangularis), १०. निम्न ओष्ठ चतुरस्रा, ११. अधर उन्नमनी (mentaiis), १२. वक्त्रमंडलिका (orbicularis oris), की निम्न ओष्ठ कृंतक पेशी (incisivus labii inferioris), १३. कपोल संपीडनी (buccinator), १४. चर्वणी (masseter), १५. वक्त्र मंडलिका, १६. कपोल संपीडनी, १७. कैनाइनस, १८. नासापट अवनमनी (depressor septi), १९. नासा, २०. कपाल पेशी (temporal) तथा २१. भ्रूनमनी (procerus)।
 
शरीर की सभी अस्थियाँ ([[करोटि]] की आभ्यंतर अस्थियों को छोड़कर) ऐच्छिक पेशियों से छाई हुई हैं। इन पेशियों के समूह बन गए हैं। प्रत्येक क्रिया एक समूह के संकुचन का परिणाम होती है। केवल एक पेशी संकुचन नहीं करती। छोटी से छोटी क्रिया में एक या कई समूह काम करते हैं। ये क्रियाएँ विस्तार (extension), आकुंचन (flexion), अभिवर्तन (adduction), अपवर्तन (abduction), और घूर्णन (rotation) होती है। पर्यावर्तन (circumduction) गति इन क्रियाओं का सामूहिक फल होता है। उत्तानन (supination) और अवतानन (pronation) क्रिया करनेवाली पेशियाँ केवल अग्रबाहु में स्थित हैं। शरीर की पेशियों का नीचे संक्षेप में वर्णन किया जाता है।
 
==सिर की पेशियाँ==
१. ललाट (frontalis) २. नासा (nasal), ३. उत्तर ओष्ठ चतुरस्रा (quadratus labii superioris) ५. सृक्कोत्कर्षणी (zygomaticus), ६. कैनाइनस (Caninus), ७. गलपार्श्वच्छदा (platysma myoides), ९. टैंगुलैरिस (tr.iangularis), १०. निम्न ओष्ठ चतुरस्रा, ११. अधर उन्नमनी (mentaiis), १२. वक्त्रमंडलिका (orbicularis oris), की निम्न ओष्ठ कृंतक पेशी (incisivus labii inferioris), १३. कपोल संपीडनी (buccinator), १४. चर्वणी (masseter), १५. वक्त्र मंडलिका, १६. कपोल संपीडनी, १७. कैनाइनस, १८. नासापट अवनमनी (depressor septi), १९. नासा, २०. कपाल पेशी (temporal) तथा २१. भ्रूनमनी (procerus)।
 
सिर का ऊपरी भाग कपाल एक कलावितान से आच्छादित है, जिसके अगले भाग में ललाटिका और पिछले भाग में पश्चकपालिका पेशियाँ लगी हुई हैं। इन दोनों को एक ही पेशी, ललाट अनुकपालिका (frontooccipitalis), के दो भाग माना जाता है। भ्रू के खिचने से ललाट में जो सिकुड़नें पड़ जाती हैं वे इसी पेशी के संकुचन का फल होती है। ललाट के नीचे के भाग में नेत्र की पलकों को घेरे हुए नेत्रमंडलिका (orbicularis oculi) है, जो नेत्रों को बंद करती है, यद्यपि उसके भिन्न भिन्न भाग स्वत: संकुचन करके मुख पर कई प्रकार के भाव उत्पन्न कर सकते हैं। नासा संबंधित, नासासंपीडनो (compressor nasi), नासाविस्फारणी (dilator nasi), नासावनमनी (depressor) और नासोष्ठकर्षणी (levator labii et nasi) का एक भाग, ये पेशियाँ हैं जिनकी क्रिया उनके नाम से स्पष्ट है। ओष्ठकर्षणी (levator labii) और सृक्क उन्नयनी (levator anguli) ऊर्ध्वोष्ठ को ऊपर की ओर खींचती हैं। सृक्कोत्कर्षणी (zygomaticus) मुख के कोण को बाहर की ओर खींचती है। वक्त्र मंडलिका (orbicularis oris) मुख के छिद्र को एक मंडल की भाँति घेरे हुए हैं। उसके संकुचन करने पर मुख का छिद्र बंद हो जाता है। निचले ओष्ठ को नीच को खींचनेवाली अधरोष्ठवनमनी (depressor labii inferioris) और सृक्कावनमनी (depressor anguli oris) पेशियाँ हैं। कपोल संपीडनी (buccinator) पेशी दोनों ऊर्ध्व और अधोहन्वस्थियों से निकलकर, आगे को जाकर, वक्त्रमंडलिका में मिल जाती है।
 
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==चर्बण संबंधी पेशियाँ==
ये कपालपेशी (temporalis), च्व्राणीचवर्णी (masseter) और अंत: और बहि: पक्षाभिका (interal and external pterygoideus) हैं। कपालपेशी कपालफलक के बहिपृष्ठ से एक पंखे के आकार में निकलती है और नीचे जाकर अधोहन्वस्थि की प्रशाखा (ramus) पर लगती है। चर्वणो पेशो ऊध््व्रा हन्वास्थि के एक प्रवर्धन और गंडचाप (zygomatic arch) की निचली धारा से निकलकर अधोहन्वस्थि को ऊपर उठाती है। शंख पेशी की भी यही क्रिया होती है। इस प्रकार यह ग्रास को ऊपर और नीचे के दाँतों के बीच मे लाकर चबाने की क्रिया करवाती है और मुँह को बंद करती है। बहि: पक्षाभिका जबड़े के अस्थिकंद (condyle) को बंद करती है। बहि: पक्षाभिका जबड़े के अस्थिकंद (condyle) को आगे को खींच कर मुँह को खोलती है। दोनों ओर की अंत:-पक्षाभिका पेशियों की बारी बारी से क्रिया होने से जबड़ा दाहिने बाए खिंचता है। वह जबड़े को ऊपर को उठाकर मुँह बंद होने में भी सहायता देती है।
 
==ग्रीवा की पेशियाँ==