"होली": अवतरणों में अंतर
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'''होली''' [[वसंत]] ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण [[भारतीय]] त्योहार है। यह [[पर्व]] [[हिंदू]] [[पंचांग]] के अनुसार [[फाल्गुन]] [[मास]] की [[पूर्णिमा]] को मनाया जाता है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले [[दिन]] को होलिका जलायी जाती है, जिसे [[होलिका दहन]] भी कहते है। दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी या [[धूलिवंदन]] कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर [[रंग]], [[अबीर-गुलाल]] इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं, और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और [[मिठाई|मिठाइयाँ]] खिलाते हैं।<ref name="colors">{{cite web |url=http://www.thecolorsofindia.com/holi-celebrations.html|title= Holi Celebrations|accessmonthday=[[3 मार्च]]|accessyear=[[2008]]|format= एचटीएमएल|publisher= द कलर्स ऑफ़ इंडिया|language=अंग्रेज़ी}}</ref>
राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है।<ref name="webdunia">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion/occasion/others/0802/09/1080209019_1.htm|title= ऋतुओं का राजा वसंत |accessmonthday=[[3 मार्च]]|accessyear=[[2008]]|format= एचटीएम|publisher= वेब दुनिया|language=}}</ref> राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही, पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। [[फाल्गुन]] माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्योहार [[वसंत पंचमी]] से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार [[गुलाल]] उड़ाया जाता है। इस दिन से [[फाग]] और [[धमार]] का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में [[सरसों]] खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में [[गेहूँ ]]की बालियाँ इठलाने लगती हैं। किसानों का ह्रदय
==इतिहास==
होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाका<ref>{{cite book |last=आप्टे |first= वामन शिवराम|title= संस्कृत हिन्दी कोश|year= 1969 |publisher= मोतीलाल बनारसीदास|location= दिल्ली, पटना, वाराणसी भारत|id= |page= ११८१|editor: वामन शिवराम आप्टे|accessday= 3|accessmonth=मार्च| accessyear=2008}}</ref> नाम से मनाया जाता था। वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे [[वसंतोत्सव]] और काम-महोत्सव भी कहा गया है।
[[चित्र:Holi2.jpg|thumb|right|280px| ▼
राधा-श्याम गोप और गोपियो की होली]]▼
इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इनमें प्रमुख हैं, जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र। [[नारद पुराण]] औऱ [[भविष्य पुराण]] जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। [[विंध्य क्षेत्र]] के [[रामगढ़]] स्थान पर स्थित ईसा से ३०० वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है। संस्कृत साहित्य में वसन्त ऋतु और वसन्तोत्सव अनेक कवियों के प्रिय विषय रहे हैं।
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इसके अतिरिक्त प्राचीन चित्रों, भित्तिचित्रों और मंदिरों की दीवारों पर इस उत्सव के चित्र मिलते हैं। [[विजयनगर]] की राजधानी [[हंपी]] के १६वी शताब्दी के एक चित्रफलक पर होली का आनंददायक चित्र उकेरा गया है। इस चित्र में राजकुमारों और राजकुमारियों को दासियों सहित रंग और पिचकारी के साथ राज दम्पत्ति को होली के रंग में रंगते हुए दिखाया गया है। १६वी शताब्दी की [[अहमदनगर]] की एक चित्र आकृति का विषय वसंत रागिनी ही है। इस चित्र में राजपरिवार के एक दंपत्ति को बगीचे में झूला झूलते हुए दिखाया गया है। साथ में अनेक सेविकाएँ नृत्य-गीत व रंग खेलने में व्यस्त हैं। वे एक दूसरे पर पिचकारियों से रंग डाल रहे हैं। मध्यकालीन भारतीय मंदिरों के भित्तिचित्रों और आकृतियों में होली के सजीव चित्र देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए इसमें १७वी शताब्दी की [[मेवाड़]] की एक कलाकृति में महाराणा को अपने दरबारियों के साथ चित्रित किया गया है। शासक कुछ लोगों को उपहार दे रहे हैं, नृत्यांगना नृत्य कर रही हैं और इस सबके मध्य रंग का एक कुंड रखा हुआ है। [[बूंदी जिला|बूंदी]] से प्राप्त एक लघुचित्र में राजा को हाथीदाँत के सिंहासन पर बैठा दिखाया गया है जिसके गालों पर महिलाएँ गुलाल मल रही हैं।<ref name="history">{{cite web |url=http://www.holifestival.org/history-of-holi.html|title= History of Holi|accessmonthday=[[3 मार्च]]|accessyear=[[2008]]|format= एचटीएमएल|publisher= होलीफेस्टिवल.ऑर्ग|language=अँग्रेज़ी}}</ref>
▲[[चित्र:Holi2.jpg|thumb|right|280px|
▲राधा-श्याम गोप और गोपियो की होली]]
==कहानियाँ==
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प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी [[होली की कहानियाँ|ढुंढी]], [[राधा]] [[कृष्ण]] के [[रास]] और [[कामदेव]] के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है।<ref name="legends">{{cite web |url= http://www.thecolorsofindia.com/holi-legends/index.html|title= Holi - Legends and Myths
|accessmonthday=[[3 मार्च]]|accessyear=[[2008]]|format= एचटीएमएल| publisher=द कलर्स ऑफ़ इंडिया।कॉम|language=अँग्रेज़ी}}</ref> कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग [[शिव]] के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान [[श्रीकृष्ण]] ने इस दिन [[पूतना]] नामक राक्षसी का वध किया था। इसी
==परंपराएँ==
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==आधुनिकता का रंग==
होली रंगों का त्योहार है, हँसी-
==संदर्भ==
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