"अवसादी शैल": अवतरणों में अंतर

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वायु, जल और हिम के चिरंतन आघातों से पूर्वस्थित शैलों का निरंतर अपक्षय एवं विदारण होता रहता है। इस प्रकार के अपक्षरण से उपलब्ध पदार्थ कंकड़, पत्थर, रेत, मिट्टी इत्यादि, जलधाराओें, वायु या हिमनदों द्वारा परिवाहित होकर प्राय: निचले प्रदेशों, सागर, झील अथवा नदी की घाटियों में एकत्र हो जाते हैं। कालांतर में संघनित होकर वे स्तरीभूत हो जाते हैं। इन स्तरीभूत शैलों को अवसाद शैल (सेडिमेंटरी रॉक्स) कहते हैं।
 
अवसाद शैलों के प्रकार-अवसाद शैलों का निर्माण तीन प्रकार से होता है। पहले प्रकार के शैलों का निर्माण विभिन्न खनिजों और शिलाखंडों के भौतिक कारणों से टूटकर इकट्ठा होने से होता है। विभिन्न प्राकृतिक आघातों से विदीर्ण रेत एवं मिट्टी नदियों या वायु के झोकों द्वारा परिवाहित होकर उपयुक्त स्थलों में एकत्र हो जाती है और पहली प्रकार की शिलाआेंशिलाओं को जन्म देती है। ऐसी शिलाओें को व्यपघर्षण (डेट्राइटल) या एपिक्लास्टिक शैल कहते हैं। बलुआ पत्थर या शैल इसी प्रकार की शिलाएँ हैं। दूसरे प्रकार के शैल जल में घुले पदार्थों के रासायनिक निस्सादन (प्रसिपिटेशन) से निर्मित होते हैं। निस्सादन दो प्रकार का होता है, या तो जल में घुले पदार्थों की पारस्परिक प्रतिक्रियाआें से या जल के वाष्पीकरण से। ऐसी शिलाआें को रासायनिक शैल कहते हैं। विभिन्न कार्बोनेट, जैसे चूने का पत्थर, डोलोमाइट आदि फास्फेट एवं विविध लवण इसी वर्ग में आते हैं। तीसरे प्रकार के शैलों के विकास में जीवों का हाथ है। मृत्यु के उपरांत प्रवाल (मूँगा), शैवाल (ऐल्जी), खोलधारी जलचर, युक्ताप्य (डाइऐटोम) आदि के कठोर अवशेष एकत्रित होकर शैलों का निर्माण करते हैं। मृत वनस्पतियों के संचयन से कोयला इसी प्रकार बना है। रासायनिक शिलाओें के निर्माण में जीवाणुओें का सहयोग उल्लेखनीय है। सूक्ष्म जीवाणुओें की उत्प्रेरणाओें से जल में घुले पदार्थों का निस्सादन तीव्र हो जाता है।
 
==इतिहास==