"भूविज्ञान": अवतरणों में अंतर

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अवसादीय शैल पदार्थ समुद्र अथवा अन्य जलाशयों की तह में बहुत काल तक संचित होता रहता है। कालांतर में भूसंचलन आदि किसी वृत के प्रभाव से वह सागर की तह में से ऊपर उठकर, पर्वत का रूप धारण कर, महादेश का भाग बन सकता है। यह एक प्रलयकारी परिवर्तन होता है। ऐसा होने से अवसादीय पदार्थ पुन: प्राकृतिक अभिकर्ताओं की क्रिया की पृष्ठभूमि बनाता है और उनके प्रभाव में आकर फिर से क्षय होता हुआ नए अवसाद को जन्म देता है, जो तत्कालीन सागर की तह में जाकर निक्षेपित होने लगता है। इस प्रकार भूपृष्ठ का पदार्थ निंरतर एक अवसादीय चक्र में भाग लेता रहता है। प्रत्येक चक्र के अंत में सागर और महादेशों का पुनस्संस्थान होता है और इनमें नए थल और जल भागों का निर्माण होता है। इस प्रकार के प्राय: 4 बृहत् और 14 लघु चक्र पृथ्वी के संपूर्ण इतिहास में हो चुके हैं
 
==इन्हें भी देखें==
*[[भौमिकी का इतिहास]]
*[[भूवैज्ञानिक कालगणना]]
*[[जीवाश्मिकी]]
 
== वाह्य सूत्र ==