"भूविज्ञान": अवतरणों में अंतर

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शुष्क एवं उष्णताप्रधान देशों में जलवाष्पन बहुलता से होता है। इन प्रदेशों में यदि कोई ऐसी झील हो जिसमें नदियों एवं वर्षावाह द्वारा लाए हुए जलन की मात्रा भाप बनकर उड़ जानेवाले जल की अपेक्षा कम हो, तो वह झील शनै: शनै: सूखने लगती है और कालांतर में पूर्णतया विनष्ट हो जा सकती है। नदियों के पानी और वर्षावाह में साधारणतया कुछ न कुछ लवण घुले रहते हैं। अत: झील में नदियों द्वारा नित्य प्रति नया लवण पदार्थ आता रहता है। उष्णता के प्रभाव से पानी भाप बनकर उड़ जाता है, परंतु लवण पीछे ही छूट जाता है। अत: झील का पानी उत्तरोत्तर अधिक लवणीय अथवा खारा होता जाता है। कालांतर में लवण इतनी अधिक मात्रा में संचित हो सकता है कि झील का जल उससे संतृप्त हो जाए। इससे अधिक वाष्पन से लवण अवक्षिप्त होने लगेगा, जिससे अवसाद लवणीय हो जाएगा। यदि लवण के अवक्षेपण के समय नदियों द्वारा लाए हुए अवसाद की मात्रा बहुत कम हो, तो प्राय: विशुद्ध लवणीय स्तर अवक्षेपित हो सकते हैं। तिब्बत की अनेकों झीलें इस क्रिया की उदाहरण हैं। वहाँ वर्षा बहुत कम होती है, जिससे झीलें उत्तरोत्तर सूखती जा रही हैं और इनकी तहों में लवणीय स्तर अवक्षेपित हो रहे हैं। पाकिस्तान के सॉल्ट रँज पर्वत में, खेवड़ा के प्रदेश में सँधा नमक तथा जिप्सम के निक्षेप इसी प्रकार किसी प्राचीन सागर की शाखा के सूखने से बने होंगे।
 
== अवसाद का संयोजन एवं द्दढ़ीभवनदृढ़ीभवन ==
 
इसी प्रकार विभिन्न प्राकृतिक अभिकर्ताओं की क्रिया से भू-पृष्ठीय शैलों का क्षय एवं अपरदन निरंतर हो रहा है और उससे उत्पन्न अवसाद अंतत: समुद्र के गर्त में संचित होता जा रहा है। ज्यों ज्यों अवसाद के स्तरों में वृद्धि होती है, नीचेवाले स्तरों के ऊपर नए आए हुए पदार्थ की दाब बढ़ती जाती है। प्राय: 300 मीटर मोटे अवसादीय स्तरों की दाब 80 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होती है। अत: केवल 60 मीटर मौटे स्तरों के संचित होने पर, सबसे नीचे के स्तरों पर प्राय: 13 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर की दाब पड़ने लगेगी। जलाशय के पानी की दाब भी कुछ कम नहीं होती। प्रति एक मीटर पानी की दाब 100 ग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होती है। इन सभी दाबों के प्रभाव से अवसाद के गुण निकटतम आकर आपस में एक दूसरे से गुँथ जाते हैं। इनके बीच का पानी निकल जाता है और वे शुष्कप्राय हो जाते हैं। जल की पतली पतली झिल्लियाँ कणों से फिर भी चिपकी रह जा सकती हैं और उनका तनाव कणों को परस्पर जुड़ा रखने में सहायता देता है।