"दैववाद": अवतरणों में अंतर
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अनुभव बताता है कि हमारी स्वाधीनता परिमित तो है, परंतु हम यह नहीं मान सकते कि हम सर्वथा पराधीन हैं। किसी वस्तु को देखने में ही हमारा मन उपलब्धों को संयुक्त करता है और अपनी स्वाधीनता की घोषणा करता है। नैतिक जीवन का तो आधार ही स्वाधीनता है। अभाव में उत्तरदायित्व के लिए कोई स्थान नहीं। स्वंय धर्म के लिए भी दैववाद कठिनाइयाँ खड़ी कर देता है। यदि हमारा भाग्य पूर्ण रूप से ईश्वर ने निश्चित किया है, तो पुण्य पाप हमारे कर्म ही नहीं; उनका फल हमें क्यों मिलेगा? इस कठिनाई से बचने के लिए कुछ विचारक कहते हैं कि दैव हमारे पूर्वजन्मों के कर्मों का संस्कार ही है; हमारा भाग्य, हमारा अपना बनाया हुआ है।
==इन्हें भी देखें==
*[[देववाद]] (Deism)
[[श्रेणी:भारतीय दर्शन]]
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