"राजबहादुर 'विकल'": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति 16:
पाँव के बल मत चलो अपमान होगा,<br>
सर शहीदों के यहाँ बोये गये हैं ।"
 
 
रहस्य-भावना को रेखांकित करतीं उनकी ये पंक्तियाँ भी द्रष्टव्य हैं-
 
"मैं ईश्वर का मुखपत्र, नई मानवता का आन्दोलन हूँ;<br>
अन्याय कहीं भी सुलगे, मैं उन लपटों का विज्ञापन हूँ।"
 
==पुरस्कार-सम्मान==
उनकी प्रकाशित कृति '''शहीदों का लहू''' पर [[वाराणसी]] के काव्य मर्मज्ञों ने '''कविकुल गुरु''' की उपाधि प्रदान की थी। राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति [[मुरादाबाद]] ने उन्हें राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन जन्मशती वर्ष में सम्मानित किया।